मकर संक्रांति पर जानें अनुष्ठान, वैज्ञानिक और आध्यात्मिक आधार

"मकर संक्रांति की संपूर्ण जानकारी! जानें गंगा अवतरण कथा, भगवान विष्णु का वध, तिल-गुड़ के लाभ, पूजा विधि, दान और विभिन्न राज्यों में संक्रांति के नाम"

Picture of Makar Sankranti

"मकर संक्रांति के दिन ही अवतरित हुई थी गंगा"

"भगवान विष्णु ने मकर संक्रांति के दिन असुरों का किया था वध"

"मकर सक्रांति के दिन माता यशोदा ने श्रीकृष्ण की प्राप्ति के लिए रखी थी व्रत"

"पितरों को करें तिल से तर्पण, मिलेगी मुक्ति"

"किस प्रदेश में किस नाम से जाना जाता है मकर संक्रांति"

"मकर संक्रांति इन देवताओं का करें पूजन"

"तिल खाने के औषधीय गुण"

"मकर संक्रांति के संबंध में पौराणिक कथा"

"गुड़ सेहत के लिए है लाभदायक"

"चूड़ा में पाये जाते हैं कार्बोहाइड्रेट"

"भगवान भास्कर को खिचड़ी का भोग लगाना शुभ"

"मकर संक्रांति के दिन सूर्य पृथ्वी की परिक्रमा  पूरा करती है"

"तिल की उत्पत्ति भगवान विष्णु से हुई थी"

"मकर संक्रांति के दिन कैसे करें पूजा, जानें विधि"

"मकर सक्रांति के दिन किस चीजों का करें दान"

"मकर सक्रांति के दिन चंद्रमा और सूर्य मकर राशि में"

"पूजा और तर्पण करने का शुभ मुहूर्त"

"भूलकर भी ना करें इस समय पूजा"

पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार मकर सक्रांति के दिन भगवान सूर्य देव अपने पुत्र शनि देव से मिलने उनके घर जाते हैं। शनि देव मकर संक्रांति के देवता है। इसलिए इस दिन को मकर सक्रांति कहा जाता है।

 शनि देव को मकर और कुंभ राशि के स्वामी माना जाता है। जिस कारण से यह दिन पिता और पुत्र के अनोखे मिलन को दर्शाता है। कई जगहों पर इस त्यौहार को नई फसल और नई ऋतु के आगमन के तौर पर मनाया जाता है।

 वर्ष 2021 में मकर संक्रांति 14 जनवरी को मकर संक्रांति त्योहार मनाया जाएगा। इसके अलावा मकर संक्रांति कथा के विषय में महाभारत में भी वर्णन मिलताा है। इसी दिन भीष्म पितामह ने प्राण त्यागे थे।

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मकर संक्रांति के दिन पितरों के उद्धार के लिए तिल से तर्पण करना शुभ होता है, क्योंकि महाराजा भागीरथ ने भी अपने पितरों के उद्धार के लिए इसी दिन तर्पण किया था। भगवान सूर्य, सूर्योदय के समय धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करते हैं।

 इस दिन भगवान सूर्य को खिचड़ी का भोग लगाने की परंपरा है। परंपरा के अनुसार मकर संक्रांति के दिन तिल से बने तिलकुट, चूड़ा, गुड़ और खिचड़ी खाने के साथ पतंग उड़ाने का भी विधान है। भविष्य पुराण के अनुसार इस दिन प्रयास और गंगासगर में स्नान का विशेष महत्व है।

जब सूर्य देव दक्षिणायन की ओर जाते हैं, अर्थात अशुभ। दक्षिण दिशा को यम का वास या यम के द्वार माना जाता है। नरक के द्वार पहुंचते ही यमदूत मृत आत्मा को लेने आते हैं। उत्तर दिशा स्वर्ग का द्वार माना जाता है। जहां, मृत आत्मा को लेने देवदूत आते हैं।

वर्ष को दो भागों में बांटा गया है, उत्तरायण और दक्षिणायन। मकर संक्रांति के दिन सूर्य पृथ्वी की परिक्रमा को पूरा करता है और उत्तर की ओर अग्रसर हो जाता है। इसलिए इस दिन से सूर्य उत्तर दिशा की ओर गतिमान हो जाता है। दक्षिणायन दिशा को दानव, दुष्ट और दुराचारियों का दिशा कहा जाता है जबकि उत्तरायण दिशा को देवताओं का दिशा माना जाता है। इसी दिशा में स्वर्ग लोक है।

"मकर संक्रांति के संबंध में पौराणिक कथा"

संक्रांति कथा के विषय में महाभारत में भी वर्णन मिलता है। महाभारत में वर्णित कथा के अनुसार महाभारत युद्ध के महान योद्धा और कौरव सेना के सेना नायक गंगापुत्र भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था। संक्रांति की महत्ता को जानते हुए उन्होंने अपनी मृत्यु के लिए इसी दिन को निर्धारित किये थे।

 वे जानते थे कि सूर्य दक्षिणायन होने पर व्यक्ति को मोक्ष प्राप्त नहीं होता है और उसे इस मृत्युलोक में पुनः जन्म लेना पड़ता है। महाभारत युद्ध के बाद जब सूर्य उत्तरायण हुआ तभी पितामह ने अपना प्राण त्यागे। वह दिन मकर संक्रांति था।

मकर संक्रांति के दिन ही अवतरित हुई थी गंगा

धार्मिक मान्यता के अनुसार मकर संक्रांति के दिन ही मां गंगा स्वर्ग से अवतरित होकर राजा भागीरथ के पीछे पीछे कपिल मुनि के आश्रम होते हुए गंगासागर तक पहुंची थी।

 मां गंगा के पवित्र जल से राजा भागीरथ ने अपने पितरों को तर्पण कर मोक्ष की प्राप्ति करा स्वर्ग लोक भेजने का काम किए थे। इसलिए मकर संक्रांति के दिन गंगा सागर और प्रयागराज में स्नान करना काफी शुभ माना जाता है। भविष्य पुराण में गंगासागर और प्रयागराज में मकर संक्रांति पर्व के मौके पर गंगा स्नान करने का उल्लेख मिलता है।

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भगवान विष्णु ने मकर संक्रांति के दिन असुरों का किया था वध

मकर सक्रांति के दिन भगवान विष्णु ने असुरों का अंत कर युद्ध समाप्ति की घोषणा की थी। श्रीहरि ने सभी असुरों के सिरों को मंदार पर्वत में दबा दिया था। इस प्रकार यह दिन बुराइयों और नकारात्मकता को खत्म करने का दिन भी माना जाता है।

मकर सक्रांति के दिन माता यशोदा ने श्रीकृष्ण की प्राप्ति के लिए रखी थी व्रत

यशोदा मां ने श्रीकृष्ण जन्म के बाद, प्राप्ति लिए व्रत रखी थी। उस समय भगवान सूर्य उत्तरायण काल में पदार्पण कर रहे थे और उस दिन मकर संक्रांति थी। तभी से मकर सक्रांति व्रत का प्रचलन हुआ है। कहा जाता है कि तिल की उत्पत्ति भगवान विष्णु से हुई थी। इसलिए इसका प्रयोग करने से पापों से मुक्ति मिलती है। तिल का उपयोग से शरीर निरोग रहता है और शरीर में गर्मी आती है।

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पितरों को करें तिल से तर्पण, मिलेगी मुक्ति

मकर संक्रांति के दिन पितरों को तिल से तर्पण करना काफी शुभ होता है। इसी दिन महाराजा भागीरथ में अपने पितरों के लिए तर्पण किया था। तर्पण विधि पूर्वक करनी चाहिए, क्योंकि भगवान सूर्य सूर्योदय के समय धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करते हैं। इस लिए सूर्योदय के समय ही पितरों को तर्पण करनी चाहिए। इसी दिन भगवान सूर्य को खिचड़ी का भोग लगाया जाता है।

किस प्रदेश में किस नाम से जाना जाता है मकर संक्रांति

भारत के विभिन्न क्षेत्रों में मकर संक्रांति पर्व अलग-अलग तरह से मनाये जाते हैं। आंध्र प्रदेश, केरल और कर्नाटक में संक्रांति कहा जाता है। तमिलनाडु में इसे पोंगल के रूप में लोग मनाते है। पंजाब और हरियाणा में लोहरी, असम में बिहू। मध्य भारत सहित बिहार और यूपी में मकर संक्रांति के नाम से प्रचलित है।

मकर संक्रांति इन देवताओं का करें पूजन

मकर संक्रांति के दिन भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु, भगवान शिव, भगवान गणेश, आदि शक्ति माता और सूर्य आराधना करने का दिन माना जाता है। इस दिन पितरों का तर्पण करने से, उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।

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तिल खाने के औषधीय गुण

मकर सक्रांति के दिन तिल खाने, लगाने और स्नान करने का धार्मिक, अध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्व है। जानें तिल में और कौन-कौन से औषधीय गुण है। तिल में कई तरह के पोषक तत्व जैसे प्रोटीन, कैल्शियम, काम्प्लेक्स बी, कार्बोहाइड्रेट, फाइबर, जिंक, कॉपर और मैग्नीशियम आदि प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। तिल में मोनो सैचुरेटेड फैटी एसिड होता है।

 यह शरीर में बुरे केलेस्ट्रॉल को कम करके अच्छा केलेस्ट्रॉल को बनाने में मदद करता है। यह ह्रदय रोग, दिल का दौरा और अथेरोक्लेरोसिस की संभावना को कम करता है। आयुर्वेद में तिल मधुमेह, कफ, पीत कारक, निम्न रक्तचाप में लाभ, स्तनों में दूध उत्पन्न करने वाला, गठिया, मल रोधक और वात नाशक माना जाता है। तिल की तासीर गर्म होता है। इसका सेवन सर्दियों में करने से शरीर में ऊर्जा बनी रहती है।

गुड़ सेहत के लिए है लाभदायक

गुड़ का तासीर गर्म है। गुड़ में लवण, मैग्नेशियम, आयरन, विटामिन ए, बी, लौह तत्व, पोटेशियम, गंधक, फासफोरस और कैल्शियम प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। गुड़ खाने से मनुष्य का शरीर स्वस्थ रहता है।

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चूड़ा में पाये जाते हैं कार्बोहाइड्रेट

मकर संक्रांति के दिन तिलकुट और गुड़ के साथ चूड़ा का भी सेवन किया जाता है। चूड़ा में कार्बोहाइड्रेट, विटामिन बी, मैंगनीज, फास्फोरस, आयरन, फाइबर, फैटी एसिड आदि तत्व पाए जाते हैं। चूड़ा खाने से पित्त को शांत करता है, यह शरीर को बल देता है।

मकर संक्रांति के दिन कैसे करें पूजा, जानें विधि

मकर संक्रांति के दिन अहले सुबह स्नान करने विधान है। इस दिन नदी, सरोवर, कुआं या घर में गंगाजल और तिल डालकर स्नान करना चाहिए। इसके बाद पितरों को तिल मिले जल से तर्पण करना चाहिए। भगवान ब्रह्मा, विष्णु, शिव, आदिशक्ति माता, शनि देव, और भगवान सूर्य को विधिपूर्वक पूजा करनी चाहिए।

 सुहागन महिलाएं एक थाली में गुड़, तिल से बने लड्डू, चूड़ा और अपने सामर्थ्य के अनुसार दक्षिणा रख लें। थाली को रोली और चावल से सजा दें। इसके बाद उस थाली को अपने सास दे दें यदि आपकी अपनी सास नहीं है तो ननंद, जेठानी, या किसी भी ब्राह्मण स्त्री को भी दे सकते हैं।

मकर संक्रांति पूजा में लगने वाले सामग्रियों की सूची

अगरबत्ती, पान का पत्ता, नारियल, सिक्के, फूल का माला, चावल, रोली, गंगाजल, फूलों का माला, कपूर, इत्र, सूर्य भगवान की तस्वीर, गुड़, तिल, चूड़ा, तिल का तेल, घी, दीया, मौली, चंदन और आम की लकड़ी प्रमुख हैं।
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मकर सक्रांति के दिन किसकी किस चीज का करें दान
मकर संक्रांति के दिन गर्म वस्त्र, तिल से बने मिठाईयां, खिचड़ी के साथ पैसा आदि दान करने का शनि से त्रस्त प्रकोपों तथा कष्टों से मुक्ति मिलती है। गरीब तथा अपाहिज और मजदूर वर्ग के सभी लोग शनि के प्रतिनिधि माने जाते हैं। इसलिए इस दिन बड़े बुजुर्गों के चरण स्पर्श करके उनका आशीर्वाद लेना चाहिए और उन्हें तिल से बनी मिठाइयों और गर्म वस्त्र उपहार स्वरूप देना चाहिए ऐसा करने से सूर्य देव प्रसन्न होते हैं।

डिस्क्लेमर (Disclaimer)

"इस ब्लॉग पोस्ट में दी गई 'मकर संक्रांति' से संबंधित सभी जानकारी, जैसे कि पूजा विधि, पौराणिक कथाएं, धार्मिक महत्व, और ज्योतिषीय विवरण, विभिन्न धार्मिक ग्रंथों, लोक मान्यताओं, पंचांग और सामान्य ज्ञान पर आधारित है।
हम यह सुनिश्चित करते हैं कि यहां दी गई जानकारी सटीक हो, लेकिन इसका उद्देश्य केवल धार्मिक और सांस्कृतिक जागरूकता प्रदान करना है। इस जानकारी को किसी भी प्रकार से पेशेवर ज्योतिषीय सलाह, चिकित्सा परामर्श या कानूनी मार्गदर्शन के विकल्प के रूप में नहीं समझा जाना चाहिए।
कोई भी धार्मिक अनुष्ठान या व्रत शुरू करने से पहले, हम आपको अपने क्षेत्र के मान्यता प्राप्त पंडित, पुरोहित या धार्मिक विशेषज्ञ से परामर्श करने की सलाह देते हैं। व्यक्तिगत स्वास्थ्य और आहार (जैसे तिल-गुड़ के औषधीय गुण) से संबंधित किसी भी निर्णय के लिए चिकित्सा विशेषज्ञ से सलाह लेना अनिवार्य है। हम इस जानकारी पर आपके द्वारा की गई किसी भी कार्रवाई के लिए जिम्मेदार नहीं होंगे।"

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