पुनर्जन्म का रहस्य:मार्कंडेय पुराण के अनुसार अगले योनि या मोक्ष

"मार्कण्डेय पुराण में जानें मरणोपरांत कौन सी योनि मिलती है। कर्म और पुनर्जन्म का गहरा संबंध क्या है? मोक्ष और जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति का मार्ग"।

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"मार्कण्डेय पुराण के अनुसार, मरणोपरांत आत्मा को कौन सी योनि (जन्म) मिलेगी, यह मुख्यतः उसके कर्मों (पाप और पुण्य) और उसके द्वारा की गई साधना पर निर्भर करता है। पुराण में पुनर्जन्म और विभिन्न योनियों की प्राप्ति के विषय में विस्तार से पढ़ें मेरे ब्लॉग पर" ?  

*मार्कण्डेय पुराण व पुनर्जन्म

*मरणोपरांत योनि

*कर्म और पुनर्जन्म

*मोक्ष प्राप्ति का मार्ग

*पितर योनि मार्कण्डेय पुराण

कर्मों के अनुसार योनियों की प्राप्ति

पाप कर्म:

अत्यधिक पाप करने वाले जीव पहले नरक में जाते हैं।
नरक में अपने पापों का भोग करने के बाद, वे क्रमशः नीची और कष्टदायक योनियों में जन्म लेते हैं।
इनमें कीड़े-मकोड़े, पतंगे, हिंसक जीव, मच्छर, हाथी, वृक्ष, गाय, घोड़े तथा अन्य दुःखदायक पाप योनियाँ शामिल हैं।
इनसे गुजरने के बाद ही वह मनुष्य योनि में आता है, और मनुष्य योनि में भी शुरुआत में वह कुरुप, कुबड़ा, नाटा या चांडाल आदि हो सकता है।
अन्याय से कमाए गए धन से किए गए श्राद्ध से चांडाल आदि योनियों में पड़े पितरों की तृप्ति होती है, जिसका अर्थ है कि अन्याय से कमाए धन का उपयोग करने वालों को भी निम्न योनियाँ मिल सकती हैं।

पुण्य कर्म:

पाप और पुण्य के मिश्रित कर्मों के प्रभाव से जीव क्रमशः ऊँची योनियों में जन्म लेता है।
इनमें शूद्र, वैश्य, क्षत्रिय, ब्राह्मण, देवता और इंद्र आदि के रूप में उत्पन्न होना शामिल है।

पितर योनि

मार्कण्डेय पुराण के कुछ संदर्भों में यह भी बताया गया है कि देवताओं की पूजा करके देवलोक गए लोग अपने पुण्यों के समाप्त होने पर पितर रूप में रहते हैं।
जो लोग शास्त्रविधि के अनुसार साधना नहीं करते हैं, उनके पितर प्रेत या कष्टमय जीवन व्यतीत करने वाली योनियों में भी रह सकते हैं।

मोक्ष और पुनर्जन्म का अंत

शास्त्रविधि के अनुसार पूर्ण मोक्ष की साधना करने वाला व्यक्ति सत धाम (शाश्वत स्थान) पर जाता है।
सत धाम पर जाने के बाद वह फिर लौटकर इस संसार में किसी भी योनि में जन्म नहीं लेता। यह जन्म और पुनर्जन्म के चक्र से स्थायी मुक्ति है।

संक्षेप में, मार्कण्डेय पुराण के अनुसार, आपका अगला जन्म आपकी वर्तमान साधना और कर्मों का परिणाम होगा। पापों से निम्न योनियां और पुण्य तथा शास्त्रों के अनुकूल साधना से श्रेष्ठ योनियां या मोक्ष की प्राप्ति होती है।

कौन व्यक्ति नरक से आया, उसे कैसे पहचानें।

आइए जानें जन्म चक्र का महत्व

सनातन धर्म में पूर्व जन्म का उल्लेख मिलता है। भगवान श्रीकृष्ण गीता में आत्मा को अमर बताया है। उनका कहना है की आत्मा शरीर धारण करती है। और उसके बाद उस शरीर को छोड़कर पुनः दूसरे शरीर में प्रवेश कर जाती है। जन्म के अनुसार लोगों को अगले जन्म में किस जीव में जन्म होगा। इसकी वृतांत हमारे वेद शास्त्रों में मिलता है। 

कर्म ही प्रधान है इसका उल्लेख मार्कंडेय पुराण में किया गया है। मार्कंडेय पुराण में बताया गया है कि आप जो पाप करते हैं उस पाप के अनुसार अगले जन्म के समय किस जीव जंतु में आपका जन्म होगा। 

अच्छा कर्म करने वाले परमात्मा में समाहित हो जाते हैं। जबकि बुरे कर्म करने वाले को 84,00000 योनियों में भ्रमण करना पड़ता है। आइए विस्तार से जानें मार्कंडेय पुराण में कौन से कर्म के लिए कौन सा विधान लिखा गया है।

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पापियों से दान लेना घोर अपराध, मिलेगा गदहा योनि

मार्कंडेय पुराण में स्पष्ट रूप से लिखा गया है कि ब्राह्मणों को धर्मी पुरुष से ही दान लेनी चाहिए। पतित से दान लेने वाला ब्राह्मण गधे की योनि में जन्म लेता है। पतित को यज्ञ कराने वाला ज्ञानी नरक से लौटने पर कीड़ा में जन्म लेता है। गुरु के साथ छल करने पर उसे कुत्ते की योनि मिलती है। गुरु की पत्नी और उसके धन को मन ही मन लेने की इच्छा करने पर भी कुत्ते की योनि में ही जन्म लेना पड़ता है। 

माता-पिता की अपमान करने वाला जातक (मनुष्य) मैना पक्षी योनि में और भाई की स्त्री का अपमान करने वाला मनुष्य कबूतर योनि में जन्म लेता है। साथ ही उसे पीड़ा देने वाला मनुष्य कछुए की योनि में जन्म लेता है।

जो व्यक्ति मालिक का तो खाता है किंतु मालिक का अनिष्ट करता है वह मरने के बाद वानर योनि में जन्म लेता है। किसी धरोहर को हड़पने वाला मनुष्य नर्क से लौटने पर कीड़ा में जन्म देता है। दूसरे का दोष देखने वाला व्यक्ति नर्क से निकलकर राक्षस बनता है। 

विश्वासघाती मनुष्य को मछली की योनि में जन्म लेना पड़ता है। जो मनुष्य अज्ञान वश धान, जौ, तिल, कुरथी, सरसों, चना, मटर, कलमी, गेहूं, तीसी तथा दूसरे अनाजों की चोरी करता है, वह नेवले के समान बड़े मुंह वाला चूहा बनता है। 

पराई स्त्री के साथ संभोग करने पर मनुष्य भयंकर भेड़िया योनि में जन्म लेता है। उसके बाद क्रमशः कुत्ता, सियार, बगुला, कीड़ा, बिच्छू, मछली, कछुआ, कौवा और चांडाल होते होते हुए पुनः मनुष्य योनि में आता है। 

शास्त्र हीन पुरुषों की हत्या करने वाले व्यक्तियों को गधा योनि में जन्म लेना पड़ता है। स्त्री और बालक को हत्या करने वाले कीड़ा की योनि में जन्म लेते हैं। भोजन की चोरी करने से मक्खी की योनि में जाना पड़ता है।

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अनाज चोरी करने पर चूहा, बिल्ली और नेवला मैं होता है जन्म

अनाज चुराने वाले लोगों को भी पाप का भागी बनना पड़ता है। उन्हें भी नरक में समय गुजारने के बाद भिन्न-भिन्न योनियों में जन्म लेना पड़ता है।

 साधारण अन्न चुराने पर मनुष्य को नरक से छूटने पर बिल्ली की योनि में जन्म लेते हैं। तेल युक्त मिश्रित अनाज चुराने पर मनुष्य को चूहे की योनि में जाना पड़ता है। घी चुराने वाले जातकों को नरक से आने पर नेवला की योनि मिलती है। नमक की चोरी करने पर जलकाग और दही चुराने पर कीड़े की योनि में जन्म लेना पड़ता है। दूध की चोरी करने पर बगुले की योनि मिलती है। 

उसी प्रकार मधु चुराने वाला व्यक्ति बनता है मधुमक्खी। पुआ की चोरी करने वाला बनता है चींटी। प्रसाद की चोरी करने वाला बिश तुइया योनि में जन्म लेना पड़ता है। तेल की चोरी करने वाला जातक नरक भोगने के बाद तेल पीने वाले कीड़े योनि में जन्म लेना पड़ता है।

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धातु की चोरी करने पर कबूतर, कीड़े और कौवा योनि मिलती है

किसी भी प्रकार की धातु की चोरी करने पर मनुष्य को नरक भोगने के बाद विभिन्न जीव जंतु और कीड़े मकोड़े की योनि में जन्म लेना पड़ता है।

 लोहा या लोहे से बने वस्तु की चोरी करने पर जातक को कौवा की योनि में जन्म लेना पड़ता है। कांसे की वस्तु का अपहरण करने पर मनुष्य को हरे रंग वाली पक्षियों की योनि मिलती है। चांदी का बर्तन चोरी करने पर कबूतर योनि में जन्म लेना पड़ता है। साथ ही सोने का पात्र चुराने पर मनुष्य को कीड़े की योनि में जन्म लेकर दुःख भोगना पड़ता है।

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वस्त्र चुराने वाले जातक को गदहा, खरगोश और छछूंदर की योनि मिलती है

वस्त्र चुराने वाले जातकों को भी नरक भोगने के साथ-साथ पशु पक्षी की योनि में जन्म लेना पड़ता है। रेशमी वस्त्र की चोरी करने पर चकवे पक्षी की योनि मिलती है। साथ ही रेशम का कीड़ा भी होना पड़ता है।

 हिरण के रोएं से बना हुआ वस्त्र, महीन वस्त्र, भेड़ और बकरी के रोएं से बना हुआ वस्त्र तथा कंबल चुराने पर तोते की योनि मिलती है। रूई का बना हुआ वस्त्र चुराने पर जोक और सूती कपड़ों की चोरी करने पर बगुला तथा गधा योनि में जन्म लेकर दुख भोगना पड़ता है। 

पतियों का साग चुराने वाले जातक को  मोर की योनि में जन्म लेना पड़ता है लाल वस्त्र चोरी करने पर चकवा पक्षी की योनि मिलती है। उत्तम सुगंधित पदार्थों की चोरी करने पर छूछूंदर और किसी प्रकार के वस्त्र की चोरी करने पर खरगोश की योनि में जन्म लेना पड़ता है।

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फल, लकड़ी, फूल और पानी की चोरी करना भी पाप की श्रेणी में आता है

फल की चोरी करना भी पाप की श्रेणी में आता है। फलों की चोरी करने वाला व्यक्ति नपुंसक बन कर जन्म लेता है। उसी प्रकार लकड़ी चोरी करने वाला घुन बनता है। फूलों की चोरी करने वाला दरिद्र और वाहन का अपहरण करने वाला अपंग होता है। 

पानी की चोरी करने वाला पपीहा बनता है। जो भूमि का अपहरण करता है उसे नरक में भयंकर कष्ट झेलने के बाद क्रमशः झाड़ी, लता, बेल और बांस का वृक्ष बनाते है। थोड़ा सा पाप कम होने पर मनुष्य योनि में आते हैं। 

जो बैल का अंडकोष को छेदन करते हैं। वह नपुंसक होते हैँ और इसी रूप में 21 जन्म बिताने के बाद कीट, पतंग, पक्षी, जलचर, जोंक तथा मृग बनाते हैं। इसके बाद बैल का शरीर धारण करने के बाद चांडाल और डोम आदि भिन्न-भिन्न योनियों में जन्म लेना पड़ता है। 

मनुष्य योनि में वह अपंग, अंधा, बहरा और अस्थमा बीमारी से पीड़ित तथा मूत्र, नेत्र और गुर्दा रोग से ग्रस्त रहता है। इतना ही नहीं इसे मिर्गी का रोग भी रहता है। तथा वाह शुद्र की योनि में जन्म लेता है। इसका कारण पूर्व जन्म में किए गए कर्म का प्रति फल है।

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गाय की चोरी, दक्षिणा न देना और बिना अग्नि के हवन करना महापाप

गाय की चोरी करने वाले को बहुत ज्यादा दुर्गति झेलनी पड़ती है। उसे नरक भोगने के अलावा 84,00000 योनियों में भ्रमण करना पड़ता है। 

उसी प्रकार विद्या ग्रहण कर गुरु को दक्षिणा न देना और अग्नि प्रज्वलित हुए बिना हवन करना भी महापाप में गिना जाता है। जो मनुष्य किसी दूसरे की स्त्री को लाकर किसी दूसरे को दे देता है। वह नरक की यातना से छूटने पर नपुंसक होता है।

 जो मनुष्य अग्नि की प्रचलित किए बिना ही उसमें हवन करता है वह गंभीर रोग से पीड़ित एवं मन्दग्नि की बीमारी से युक्त होता है।Picture of mystery of rebirth

कौन व्यक्ति नरक से आया, उसे कैसे पहचाने

नरक से आने वाले लोगों की पहचान आसान है। बस लोग चरित्र पर थोड़ा ध्यान दें, आपको स्पष्ट रूप से पहचान हो जाएगा कि कौन से कर्म करके आया है। दूसरों की निंदा करना, दूसरों के गुप्त भेद को खोलना, निष्ठूरता दिखाना, निर्दई होना, पराई स्त्री का सेवन करना, दूसरों का धन हड़प लेना, अपवित्र रहना, देवताओं का निंदा करना, मनुष्यों को रुलाना, कंजूसी करना, हत्या करना, पत्नी रहते हुए भी दूसरे की पत्नी के साथ रतिक्रिया करना, रिश्ते-नाते में स्वार्थ रखना और नशा का आदि होना सहित अन्य और भी कारक है। इस प्रकार के लक्षण जिस मनुष्य में दिखे तो आप समझ जाइए कि वह व्यक्ति नर्क भोग कर आया है।

ब्लॉग डिस्क्लेमर (Blog Disclaimer)

यह ब्लॉग पोस्ट मार्कण्डेय पुराण में वर्णित पुनर्जन्म, कर्म के सिद्धांत और विभिन्न योनियों की प्राप्ति से संबंधित धार्मिक और पौराणिक मान्यताओं पर आधारित है।

कृपया ध्यान दें:

ज्ञान का स्रोत: इस आलेख में दी गई समस्त जानकारी मार्कण्डेय पुराण की व्याख्याओं और उल्लेखों पर आधारित है। इसका उद्देश्य केवल पौराणिक ज्ञान को प्रस्तुत करना है।

व्यक्तिगत विश्वास: पुनर्जन्म, कर्मफल और मोक्ष की अवधारणाएँ व्यक्तिगत आस्था और धार्मिक विश्वास का विषय हैं। इन विषयों पर विभिन्न संप्रदायों और व्यक्तियों के अलग-अलग मत हो सकते हैं।

सलाह नहीं: यह आलेख किसी भी प्रकार की धार्मिक सलाह, कानूनी सलाह या व्यक्तिगत मार्गदर्शन प्रदान करने के लिए नहीं है। अपने जीवन या साधना से जुड़े किसी भी निर्णय के लिए पाठकों को स्वयं के विवेक और विशेषज्ञ/गुरुजनों से परामर्श लेने की सलाह दी जाती है।

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