इंदिरा एकादशी 2025 कब है? जानें इंदिरा एकादशी का महत्व, पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और पौराणिक कथा जो पितरों को मोक्ष दिलाए। पितृ दोष शांति के उपाय।
मेरे हिंदी ब्लॉग में क्रमवार पढ़ें इंदिरा एकादशी व्रत की शुभ मुहूर्त। पौराणिक कथा। एकादशी व्रत की महिमा। भगवान विष्णु को पूजा करने की विधि। पितृ पक्ष एकादशी और श्राद्ध एकादशी की पूजा विधि। एकादशी का महत्व और उसके फायदे। कैसे होता है मोक्ष की प्राप्ति। इंदिरा एकादशी की अनसुनी कहानियां। एकादशी के नियम। द्वादशी पारण एवं पितृ दोष निवारण।
"भगवान विष्णु की दिव्य उपस्थिति के साथ 'इंदिरा एकादशी 2025' – मोक्ष व पुण्य की प्राप्ति का पावन पर्दरा एकादशी 2025: पितरों को मोक्ष दिलाने वाला पावन व्रत
इंदिरा एकादशी सनातन धर्म में एक अत्यंत महत्वपूर्ण और पवित्र व्रत है, जो पितृपक्ष के दौरान विशेष रूप से पितरों को मोक्ष प्रदान करने के लिए समर्पित है। यह व्रत अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है। भगवान विष्णु को समर्पित यह दिन, भक्तों को न केवल आध्यात्मिक शांति प्रदान करता है, बल्कि उन्हें अपने पूर्वजों के लिए पुण्य कमाने का अवसर भी देता है।
इंदिरा एकादशी 2025: शुभ मुहूर्त और तिथि
आइए, इंदिरा एकादशी 2025 की तिथि और शुभ मुहूर्त पर एक नज़र डालते हैं:
इंदिरा एकादशी 2025 की तिथि: बुधवार, 17 सितंबर 2025
एकादशी तिथि प्रारंभ: 16 सितंबर 2025 को मध्य रात्रि 12:21 बजे से शुरू होकर 17 सितंबर 2025 की रात 11:39 बजे तक एकादशी तिथि समाप्त हो जाएगा।
चारों पहर पूजा करने का शुभ महूर्त
एकादशी वत में चारों पहर पूजा करने का विधान है। हम आपको चारों पहर का शुभ मुहूर्त बता रहे हैं सुबह लाभ मुहूर्त 05:32 बजे से लेकर 07:04 बजे तक और अमृत मुहूर्त 07:04 बजे से लेकर 08:36 बजे तक रहेगा। दोपहर शुभ मुहूर्त सुबह 10:08 बजे से लेकर 11:40 बजे तक रहेगा शाम के समय पूजा करने का शुभ मुहूर्त इस प्रकार है
लाभ मुहूर्त शाम 04:15 बजे से लेकर 05:47 बजे तक और गोधूलि मुहूर्त 05:45 बजे से लेकर 06:10 बजे तक रहेगा मध्यरात्रि पूजा करने का शुभ मुहूर्त इस प्रकार है। चर मुहूर्त लाभ 10:11 बजे से लेकर 11:40 बजे तक और निशिता मुहूर्त 11:16 बजे से लेकर 12:03 बजे तक रहेगा।
पारण (व्रत तोड़ने का) समय: 18 सितंबर 2025 को सुबह शुभ मुहूर्त 05:33 बजे से लेकर 07:04 बजे तक रहेगा इस दौरान आप पूजन कर पालन कर सकते हैं।
इंदिरा एकादशी की पौराणिक कथा
इंदिरा एकादशी की पौराणिक कथा सिर्फ एक कहानी नहीं, बल्कि कर्म, धर्म और मोक्ष के गूढ़ सिद्धांतों का एक सुंदर निरूपण है। यह कथा हमें बताती है कि कैसे एक व्यक्ति के पुण्य कार्य उसके पितरों को भी कष्टों से मुक्ति दिला सकते हैं। इस कथा को आप विस्तृत रूप से निम्न प्रकार से पढ़ सकते हैं:
01. महिष्मती नगरी और राजा इंद्रसेन:
कथा का आरंभ महिष्मती नामक एक प्राचीन और समृद्ध नगरी से होता है, जहां धर्मपरायण और न्यायप्रिय राजा इंद्रसेन का शासन था। राजा इंद्रसेन अपनी प्रजा के बीच अत्यधिक लोकप्रिय थे। वे भगवान विष्णु के परम भक्त ही नहीं बल्कि महान सेवक थे और हमेशा धर्म के मार्ग पर चलते थे। उनके राज्य में कोई दुखी, पीड़ित और गरीब नहीं था। सभी समृद्धि थे। राजा की ख्याति चारों ओर फैली हुई थी। राजा का जीवन सुखमय था, लेकिन एक रात उन्हें एक स्वप्न आया, जिसने उनके जीवन की दिशा ही बदल दी।
02. स्वप्न और पितरों की व्यथा:
स्वप्न में राजा इंद्रसेन ने अपने दिवंगत पिता को देखा, जो यमलोक में घोर कष्ट भोग रहे थे। उनके पिता अत्यंत पीड़ा में थे और बार-बार राजा से मुक्ति की याचना कर रहे थे। यह स्वप्न राजा के लिए एक भयानक अनुभव था। नींद खुलने पर राजा अत्यंत विचलित हो गए।
राजा इंद्रसेन अपने राजमहल में गहरी नींद में सो रहे थे, परंतु उनका मन अशांत था। निद्रा में भी वे अपने पूर्वजों को नर्क की अग्नि में जलते और पीड़ा सहते देख रहे थे। यह दृश्य उनके मन को भीतर तक झकझोर गया।
उन्हें अपने पिता की दुर्दशा देखकर गहरे सदमे में आ गए और अंदर तक झकझोर दिया। वे सोचने लगे कि कैसे उनके धर्मपरायण पिता को ऐसी दुर्दशा भोगनी पड़ रही है, और वे इस स्थिति से उन्हें कैसे मुक्त कर सकते हैं। राजा की चिंता बढ़ती गई।
03. नारद मुनि का आगमन:
राजा की चिंता और दुख देखकर, देवर्षि नारद अपने दिव्य लोक से महिष्मती नगरी में पधारे। नारद मुनि त्रिकालदर्शी थे और उन्होंने अपनी योगदृष्टि से राजा के मन की स्थिति और उनके स्वप्न का कारण जान लिया था। राजा ने नारद मुनि का आदर-सत्कार किया और उनके आगमन का कारण पूछा।
नारद मुनि ने राजा को बताया कि वे उनके पिता की पीड़ा और उसके कारण को जानते हैं। उन्होंने बताया कि राजा के पिता ने अपने जीवनकाल में एक छोटा सा पाप किया था, जिसके कारण वे नरक लोक में कष्ट भोग रहे थे।
04. इंदिरा एकादशी का महत्व:
नारद मुनि ने राजा को बताया कि इस समस्या का एकमात्र समाधान इंदिरा एकादशी का व्रत है। उन्होंने राजा को इस व्रत का महत्व समझाया कि यह एकादशी पितरों को मोक्ष प्रदान करने वाली है। नारद मुनि ने राजा को आश्वस्त किया कि यदि वे यह व्रत विधि-विधान से और पूर्ण श्रद्धा के साथ करेंगे, तो उनके पिता को अवश्य मोक्ष की प्राप्ति होगी और वे स्वर्ग लोक में स्थान पाएंगे।
नारद मुनि ने यह भी बताया कि यह व्रत न केवल पितरों को मुक्ति दिलाता है, बल्कि व्रत करने वाले के स्वयं के पापों का भी नाश करता है और उसके जीवन में सुख-शांति व समृद्धि लाता है।
05. व्रत का संकल्प और पालन:
राजा इंद्रसेन ने नारद मुनि के वचनों पर पूर्ण विश्वास किया और अपनी पत्नी सहित इंदिरा एकादशी का व्रत करने का संकल्प लिया। नारद मुनि ने उन्हें व्रत की संपूर्ण विधि विस्तार से समझाई। दशमी तिथि से ही व्रत के नियम प्रारंभ हो जाते हैं, जिसमें सात्विक भोजन ग्रहण करना, ब्रह्मचर्य का पालन करना और मन को शुद्ध रखना शामिल है।
एकादशी के दिन राजा और उनकी पत्नी ने प्रातःकाल उठकर स्नान किया और भगवान शालिग्राम की प्रतिमा स्थापित कर उनकी विधिवत पूजा की। उन्होंने तुलसी दल, पीले फूल, फल और अन्य पूजा सामग्री अर्पित की।
06. पितृ तर्पण और ब्राह्मण भोजन:
पूजा के बाद, राजा ने अपने पितरों के निमित्त तर्पण किया। यह विधि पितरों को जल अर्पित करने और उन्हें याद करने की है, जिससे उनकी आत्मा को शांति मिलती है।
उन्होंने ब्राह्मणों को भोजन कराया और उन्हें दक्षिणा दी, जिससे उनका आशीर्वाद प्राप्त हो सके। राजा ने पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ एकादशी के नियमों का पालन किया। वे दिन भर भगवान विष्णु का ध्यान करते रहे और रात में जागरण कर विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ किया।
नर्क की तस्वीर है। जिसमें विभिन्न कर्मों के अनुसार उनके फल दिए जा रहे हैं।
07. व्रत का फल और पितरों की मुक्ति:
द्वादशी तिथि को, व्रत का पारण करने से पहले, राजा ने पुनः ब्राह्मणों को भोजन कराया और दान-दक्षिणा दी। इसके बाद उन्होंने परिवार के साथ भोजन ग्रहण कर अपना व्रत पूर्ण किया।
व्रत पूर्ण होते ही, राजा ने स्वप्न में देखा कि उनके पिता नरक लोक से मुक्त होकर स्वर्ग की ओर प्रस्थान कर रहे हैं। उनके पिता ने राजा को आशीर्वाद दिया और उन्हें अपने पुण्य कर्मों का फल बताया। राजा इंद्रसेन के पिता ने उन्हें धन्यवाद दिया कि उनके पुत्र के इस व्रत के कारण उन्हें मुक्ति मिली है।
08. कथा का प्रभाव और इंदिरा एकादशी का स्थायी महत्व:
इस घटना के बाद से इंदिरा एकादशी का महत्व और बढ़ गया। यह कथा बताती है कि कैसे भक्ति और श्रद्धा से किया गया एक छोटा सा प्रयास भी हमारे पूर्वजों के लिए मुक्ति का मार्ग खोल सकता है। राजा इंद्रसेन की इस कथा ने आने वाली पीढ़ियों के लिए इंदिरा एकादशी के महत्व को स्थापित किया।
यह कथा हमें याद दिलाती है कि हम अपने कर्मों से न केवल अपने वर्तमान और भविष्य को प्रभावित करते हैं, बल्कि अपने पूर्वजों और आने वाली पीढ़ियों पर भी इसका प्रभाव पड़ता है। इसलिए, धर्म के मार्ग पर चलना और पवित्र व्रतों का पालन करना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
इंदिरा एकादशी की पूजा विधि
इंदिरा एकादशी का व्रत दशमी तिथि से ही शुरू हो जाता है और द्वादशी तिथि तक चलता है।
01. दशमी तिथि के दिन:
एक समय भोजन: दशमी के दिन भक्त केवल एक समय सात्विक भोजन करते हैं। मांसाहारी भोजन, प्याज, लहसुन और तामसिक भोजन से पूरी तरह परहेज किया जाता है।
ब्रह्मचर्य का पालन: दशमी की रात से ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
पितृ तर्पण (वैकल्पिक): यदि संभव हो तो दशमी के दिन दोपहर में नदी या पवित्र सरोवर में पितरों के लिए तर्पण किया जा सकता है। इसमें जल और काले तिल से पितरों को अर्घ्य दिया जाता है।
घर की शुद्धि: घर और पूजा स्थल को अच्छी तरह साफ करें।
02. एकादशी तिथि के दिन:
प्रातःकाल स्नान: सूर्योदय से पहले उठकर पवित्र स्नान करें।
व्रत का संकल्प: स्वच्छ वस्त्र पहनकर भगवान विष्णु के सामने हाथ जोड़कर व्रत का संकल्प लें। संकल्प लेते समय कहें कि "मैं इंदिरा एकादशी का व्रत अपने पितरों को मोक्ष दिलाने और अपने पापों का नाश करने के लिए कर रहा/रही हूं।"
भगवान शालिग्राम की पूजा: भगवान शालिग्राम (विष्णु का एक रूप) या भगवान विष्णु की मूर्ति/चित्र स्थापित करें। उन्हें गंगाजल से स्नान कराएं।
पीले वस्त्र अर्पित करें। पीले फूल, तुलसी दल, चंदन, धूप, दीप, नैवेद्य (फल, मिठाई) अर्पित करें। विष्णु सहस्त्रनाम या ओम नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप करें।
इंदिरा एकादशी व्रत कथा श्रवण: एकादशी की कथा पढ़ें या सुनें।
एक सनातनी व्यक्ति श्रद्धापूर्वक लोटे से जल अर्पित कर अपने पूर्वजों को तर्पण कर रहा है। यह दृश्य भक्ति और परंपरा का सुंदर संगम है।
पितृ तर्पण: इस दिन दोपहर में पितरों के लिए विशेष तर्पण और श्राद्ध कर्म किए जाते हैं। इसमें जल, दूध, काले तिल और कुश से पितरों को तर्पण दिया जाता है।
ब्राह्मण भोजन: यदि संभव हो, तो ब्राह्मणों को भोजन कराएं और उन्हें दान-दक्षिणा दें।
रात्रि जागरण: रात में जागरण कर भगवान विष्णु के भजन-कीर्तन करें और उनकी कथाएं सुनें।
03. द्वादशी तिथि के दिन (पारण):
प्रातःकाल पूजा: सुबह स्नान कर भगवान विष्णु की पुनः पूजा करें।
ब्राह्मण को भोजन और दान: पारण से पहले ब्राह्मणों को भोजन कराएं और उन्हें यथाशक्ति दान-दक्षिणा दें।
व्रत का पारण: निर्धारित शुभ मुहूर्त में व्रत का पारण करें। पारण में सबसे पहले तुलसी पत्ता या गंगाजल ग्रहण कर सकते हैं। इसके बाद सात्विक भोजन करें।
अन्न का दान: एकादशी के दिन अन्न ग्रहण नहीं किया जाता, इसलिए द्वादशी को अन्न का दान करना शुभ माना जाता है।
इंदिरा एकादशी से जुड़ी रोचक घटनाएं/तथ्य
पितृ पक्ष में एकमात्र एकादशी: इंदिरा एकादशी पितृ पक्ष (श्राद्ध पक्ष) में पड़ने वाली एकमात्र एकादशी है, जो इसे पितरों के लिए विशेष बनाती है।
अश्वमेध यज्ञ के समान फल: शास्त्रों में कहा गया है कि इंदिरा एकादशी का व्रत करने से अश्वमेध यज्ञ के समान पुण्य फल प्राप्त होता है।
अकाल मृत्यु से मुक्ति: मान्यता है कि इस व्रत के प्रभाव से अकाल मृत्यु को प्राप्त हुए पितरों को भी मुक्ति मिल जाती है।
पितृ दोष का निवारण: जिन व्यक्तियों की कुंडली में पितृ दोष होता है, उनके लिए यह व्रत अत्यंत लाभकारी माना जाता है, क्योंकि यह दोष को शांत करने में मदद करता है।
शादीशुदा जीवन में शांति: यह व्रत परिवार में सुख-शांति और समृद्धि लाने में भी सहायक माना जाता है।
साल्वेशन फॉर फादर्स: यह एकमात्र एकादशी है जिसका नाम एक राजा के पिता के नाम पर है, जिससे इसका सीधा संबंध पितरों की मुक्ति से है।
अस्वीकरण (Disclaimer)
कृपया ध्यान दें कि यह ब्लॉग पोस्ट इंदिरा एकादशी से संबंधित धार्मिक और आध्यात्मिक जानकारी प्रदान करने के उद्देश्य से लिखा गया है। यहां दी गई सभी जानकारी विभिन्न धार्मिक ग्रंथों, पौराणिक कथाओं और प्रचलित मान्यताओं पर आधारित है।
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