बैकुंठ चतुर्दशी कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है। इस दिन भगवान विष्णु और शिव जी की पूजा का विशेष महत्व होता है। इस वर्ष (2024) यह तिथि 14 नवंबर, दिन गुरुवार को पड़ रही है।
बैकुंठ चतुर्दशी व्रत के दिन सर्वार्थ सिद्धि योग, रवि योग और आडल योग पड़ रहा है। इस दिन विशेश्वर व्रत, नेहरू जयंती और बाल दिवस भी है।
पौराणिक कथा भगवान विष्णु को काशी आने की
बैकुंठ चतुर्दशी के पीछे एक पौराणिक कथा है। माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु भगवान शिव की उपासना करते हैं। कथा के अनुसार, एक बार भगवान विष्णु ने शिव की प्राप्ति के लिए काशी में 1,000 कमल के फूलों से शिवलिंग का पूजन किया।
परंतु शिव ने उनकी भक्ति की परीक्षा लेने के लिए एक कमल का फूल छुपा दिया। भगवान विष्णु ने तब अपने नेत्रों का उपयोग कमल की तरह कर शिव का पूजन किया। इस कारण उनका नाम "कमलनयन" पड़ा। भगवान शिव उनकी भक्ति से प्रसन्न हुए और विष्णु को सुदर्शन चक्र का वरदान दिया।
बैकुंठ चतुर्दशी का व्रत मुख्य रूप से भगवान विष्णु और भगवान शिव को समर्पित होता है। इस दिन निर्जला व्रत रखने की परंपरा भी है, हालांकि यह व्यक्ति की क्षमता और श्रद्धा पर निर्भर करती है।
कैसे करें पूजा जानें संपूर्ण विधि
1. भगवान विष्णु: इस दिन प्रातः स्नान करके भगवान विष्णु की पूजा करें। विष्णु जी के समक्ष दीपक जलाएं, पुष्प, तुलसी पत्र और फल अर्पित करें
2. भगवान शिव: भगवान शिव की पूजा में बिल्व पत्र, धतूरा, फूल, जल और दूध से अभिषेक करें। शिवलिंग के सामने दीपक जलाएं और ओम नमः शिवाय का जप करें।
3. गंगा पूजा: बैकुंठ चतुर्दशी के दिन गंगा स्नान का भी महत्व है। अगर संभव हो तो गंगा स्नान करें और जल में दीप प्रवाहित करें।
पूजा का समय और शुभ मुहूर्त
पूजा का उत्तम समय प्रातःकाल और संध्या समय में होता है। विशेष रूप से, भगवान विष्णु की पूजा प्रातःकाल करें और भगवान शिव की पूजा संध्या के समय करें।
पूजा करने का मुहूर्त सुबह 05:58 बजे से लेकर 07:21 बजे तक शुभ मुहूर्त के रूप में रहेगा। इस प्रकार सुबह 10:07 बजे से लेकर 11:30 बजे तक चार मुहूर्त रहेगा।
संध्या समय शाम 05:01 बजे से लेकर 06:39 बजे तक अमृत मुहूर्त और 06:39 बजे से लेकर 08:16 बजे तक चार मुहूर्त रहेगा इस दौरान आप संध्या की पूजा अर्चना कर सकते हैं।
विशेष विधान
रात्रि के समय दीपदान का विशेष महत्व होता है। मंदिर या नदी के किनारे दीपदान करने से पुण्य प्राप्त होता है।
नोट: निर्जला व्रत करने का संकल्प लेने से पहले स्वास्थ्य का ध्यान अवश्य रखें, विशेषकर अगर आप निर्जला उपवास के आदी नहीं हैं।
पूजा विधि
1. स्नान और संकल्प: ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें और व्रत का संकल्प लें।
2. दीप दान: इस दिन दीप जलाकर उसे जल में प्रवाहित करने का विशेष महत्व होता है।
3. भगवान शिव और विष्णु की पूजा: दोनों देवताओं की प्रतिमा या तस्वीर के सामने दीपक जलाएं और पंचामृत से अभिषेक करें। फिर फूल, धूप, दीप, और नैवेद्य अर्पित करें।
4. व्रत कथा का पाठ: बैकुंठ चतुर्दशी की कथा सुनें या पढ़ें।
5. मंत्र जाप: भगवान विष्णु और शिव के मंत्रों का जाप करें।
6. विशेष ध्यान: विशेष रूप से विष्णु सहस्त्रनाम और महामृत्युंजय मंत्र का जाप करना लाभकारी माना जाता है।
7. प्रसाद वितरण: पूजा के बाद सभी को प्रसाद वितरित करें और अंत में व्रत का पारण करें।
बैकुंठ चतुर्दशी के दिन पूजा करने से भगवान शिव और विष्णु दोनों की कृपा प्राप्त होती है और बैकुंठ धाम में स्थान प्राप्त करने का आशीर्वाद मिलता है।
बैकुंठ चतुर्दशी के दिन काशी विश्वनाथ मंदिर की स्थापना से जुड़ी एक प्राचीन कथा है, जो भगवान विष्णु और शिव जी की भक्ति और उनकी परीक्षा पर आधारित है। काशी, जो भगवान शिव की नगरी के रूप में प्रसिद्ध है, इस कथा में एक दिव्य लीला का प्रतीक है, जहां भगवान विष्णु ने शिव की भक्ति का एक अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत किया।
पौराणिक कथा का शुभारंभ
कहानी के अनुसार, एक समय भगवान विष्णु ने सोचा कि ब्रह्मा और रूद्र दोनों के प्रति समान आदर भाव रखने का सर्वोत्तम तरीका क्या हो सकता है। उन्हें पता चला कि काशी में निवास करने वाले लोग सदैव भगवान शिव का ध्यान करते हैं और वहां के लोग अपनी आत्मा की शुद्धि और मोक्ष प्राप्ति की आशा में शिव की भक्ति में लीन रहते हैं। इसलिए भगवान विष्णु ने निश्चय किया कि वे काशी जाकर भगवान शिव की उपासना करेंगे।
भगवान विष्णु काशी पहुंचे और उन्होंने वहां भगवान शिव के प्रिय फूल कमल से उनकी पूजा की। उन्होंने एक हजार कमल के फूलों का अर्पण करने का संकल्प लिया, लेकिन जब वे अंतिम फूल अर्पण करने वाले थे, तभी भगवान शिव ने उनकी भक्ति की परीक्षा लेने के लिए एक फूल छिपा दिया।
विष्णु की भक्ति की परीक्षा ली भोलेनाथ ने
जब विष्णु जी ने देखा कि एक कमल का फूल कम हो गया है, तो उन्होंने अपने नेत्रों में से एक को कमल का फूल मानकर भगवान शिव को अर्पित कर दिया। उनके इस कार्य से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए और उन्हें वरदान दिया।
इस घटना के कारण भगवान विष्णु को "कमलनयन" भी कहा जाने लगा। भगवान शिव ने उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर काशी में उनका निवास स्थायी कर दिया और कहा कि वे काशी के निवासियों की रक्षा करने के लिए सदैव वहीं विराजमान रहेंगे।
काशी है भगवान विश्वनाथ का दिव्य धाम
भगवान शिव ने तब कहा कि वे काशी में "विश्वनाथ" के रूप में स्थापित होंगे, और इस प्रकार से काशी का वह स्थान "काशी विश्वनाथ मंदिर" के रूप में प्रसिद्ध हो गया।
यह माना जाता है कि भगवान शिव ने विष्णु जी को आशीर्वाद दिया कि जो भी इस मंदिर में बैकुंठ चतुर्दशी के दिन उनकी पूजा करेगा, उसे मोक्ष की प्राप्ति होगी और उसे बैकुंठ धाम में स्थान मिलेगा।
यह भी कहा जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु स्वयं काशी विश्वनाथ के मंदिर में उपस्थित रहते हैं और जो व्यक्ति इस दिन काशी विश्वनाथ के दर्शन करता है, उसे बैकुंठ धाम में स्थान मिलता है।
क्या है धार्मिक महत्व
बैकुंठ चतुर्दशी का पर्व काशी में अत्यंत धूमधाम से मनाया जाता है। भक्तजन भगवान शिव और विष्णु दोनों की पूजा करते हैं और रातभर जागरण करके भक्ति में लीन रहते हैं। इस दिन काशी विश्वनाथ मंदिर में दीप जलाने का विशेष महत्व है, जिसे "दीपदान" कहा जाता है।
यह मान्यता है कि जो व्यक्ति इस दिन काशी में दीपदान करता है, उसकी सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं और उसे मृत्यु के पश्चात मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस प्रकार बैकुंठ चतुर्दशी का पर्व भगवान विष्णु और शिव के प्रेम, भक्ति, और मोक्ष प्राप्ति की प्रतीक कथा को हमारे सामने प्रस्तुत करता है, और यह काशी के प्रमुख धार्मिक उत्सवों में से एक माना जात
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