श्राद्ध कर्म करने की संपूर्ण जानकारी विस्तार से जानें

श्राद्ध एक संस्कृत शब्द है। जिसका शाब्दिक अर्थ होता है ईमानदारी और विश्वास के साथ किया गया कर्म। अन्य शब्दों में पितरों के लिए श्रद्धा के लिए किए गए मुक्ति कर्म को श्राद्ध कहते हैं। श्राद्ध आमतौर पर तीन पीढ़ियों द्वारा किया जाता है।

 

हिंदू धर्म शास्त्र में चार प्रकार के ऋण बताएं जाते हैं। देव ऋण, ऋषि ऋण, पितृ ऋण और समाज ऋण। इनमें से पितृ ऋण निवारण हेतु पितृ यज्ञ का वर्णन किया गया है। जिसे सरल भाषा में श्राद्ध कर्म कहा जाता है। भाद्रपद शुक्ल पक्ष पूर्णिमा तिथि से लेकर अश्वनी कृष्ण पक्ष अमावस्या तक के समय को पितृ पक्ष कहा जाता है। श्राद्ध का पितरों से अटूट संबंध है। पितरों के बिना श्राद्ध की कल्पना नहीं की जा सकती है। 

श्राद्ध तर्पण

स्नेह और श्रद्धा से किए गए कर्म श्राद्ध है और जिस कर्म से माता-पिता और आचार्य तृप्त हो उसे तर्पण कहा जाता है। तर्पण करना ही पिंडदान करना है। तिल मिश्रित जल और उसके साथ किए गए तर्पण को ही तिलांजलि कहते हैं।

तर्पण में दो कुशों से बनाई हुई पवित्री (अंगुठी) दाहिनी हाथ की अनामिका उंगली के मूल भाग में धारण करें। तीन कुशों से बनाई हुई पवित्री (अंगुठी) वाई अनामिका  के मूल में धारण करें। हाथ में जौ, तिल, चावल और जल लेकर दक्षिण की ओर मुख करके माता, पिता, पिता के पिता और परबाबा को तीन तीन बार अंजलि से तिलांजलि दी जाती है। ज्ञात हो कि तर्पण दक्षिण की ओर मुख करके करना चाहिए। 

सप्तमी तिथि, रविवार दिन और जन्म तिथि पर तर्पण कर पुत्र और पुत्री की कामना करने वाले मनुष्य को तिल से तर्पण करना चाहिए। इसी प्रकार नंदा तिथि (1, 6, 11) शुक्रवार, कृतिका, मधा, भरनी नक्षत्र और गजच्छाया योग में तिल से मिले जल से कदापि तर्पण न करें। किंतु ग्रहण काल पितृ श्राद्ध, व्यतिपात योग, अमावस्या तिथि और संक्रांति के दिन निषेध होने पर भी तिल मिलाकर तर्पण कर सकते हैं।

 पुराणों में तर्पण को छह भागो में बांटा गया है। जो इस प्रकार है। देव तर्पण, ऋषि तर्पण, दिव्य मानव तर्पण, दिव्य पितृ तर्पण, यम तर्पण और मनुष्य पितृ तर्पण।

श्राद्ध की अनिवार्यता

श्राद्ध कर्म का पितरों से अटूट संबंध है। पितरों के बिना श्राद्ध की कल्पना नहीं की जा सकती है। श्राद्ध पितरों का आहार पहुंचाने का आधार मात्र है। हिंदू धर्म शास्त्र में इस बात का उल्लेख है कि पितृ पक्ष में तर्पण और श्राद्ध करने से व्यक्ति के पूर्वज प्रसन्न होते हैं और अपने वंशज को आशीर्वाद प्रदान करने का काम करते हैं। जिससे घर के अंदर सुख शांति का वातावरण बना रहता है। उसके साथ ही घरों में समृद्धि भी आती है।

श्राद्ध दीर्घायु की कारक है

श्राद्ध कर्म से तृप्त होकर श्राद्ध देवता श्राद्ध करने वाले को दीर्घ आयु, आज्ञाकारी संतान, धन, विद्या, सुख समृद्धि और स्वास्थ्य का आशीर्वाद देते हैं। उन्हें स्वर्ग तथा दुर्लभ मोक्ष की प्राप्ति होती है। पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध अवश्य करनी चाहिए। 

15 दिनों के लिए पितर आते हैं धरती पर

माना जाता है कि यमराज 15 दिनों के लिए प्रत्येक वर्ष श्राद्ध पक्ष के दौरान सभी जीवो को मुक्त कर देते हैं। सभी जीव अपने स्वजनों के पास पहुंचकर तर्पण और भोजन की कामना करते हैं। शास्त्रों में ऐसा माना जाता है कि पितर अपने कुल की रक्षा करते हैं।

भूखे लौटने पर पितर देते हैं श्राप

जो लोग अपने पूर्वजों के नाम श्राद्ध नहीं करते उन लोगों के पूर्वज धरती से भूखे ही लौटने के लिए विवश हो जाते हैं। श्राद्ध नहीं मिलने से पितर असंतुष्ट होकर अपनी संतानों को श्राप देते हुए लौट जाते हैं। उनके निराश होकर लौट जाने की वजह से घरों के लोग अकाल मृत्यु, अनेक प्रकार की बीमारियों के कारण लोग सालो दर साल अशांत रहते हैैं।

पितर अगर नाराज तो समस्याएं होंगी अपार

इसलिए हिंदू धर्म में मान्यत है कि यथाशक्ति और यथासंभव प्रत्येक व्यक्ति को श्राद्ध पक्ष में अपने पूर्वजों के नाम पर दान, तर्पण, पिंडदान आदि जरूर करना चाहिए ताकि आपको अपने पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त हो सके। ऐसा मान्यता है कि अगर पितर नाराज़ हो जाए तो लोगों को अपने जीवन में कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। 

कैसे करते हैं श्राद्ध

श्राद्ध विधि सुबह उठकर स्नान कर देवस्थान एवं निवास स्थान को गाय के गोबर से लिपकर एवं गंगाजल से पवित्र करके घर के आंगन में रंगोली बनाएं। जिस तिथि को श्राद्ध किया जाता है। उस दिन पवित्र स्वादिष्ट और गरिष्ठ भोजन बनाया जाता है। महिलाएं शुद्ध होकर पितरों के लिए भोजन बनाएं।

श्राद्ध का अन्न गाय और कौआ को पहले

 भोजन सबसे पहले कौआ और गाय के लिए निकाला जाता है। श्रेष्ठ कुल के ब्राह्मण, या कुल के अधिकारी अर्थात दामाद या भगिना को न्योता देकर बुलाएं।  पूजा में गाय का दूध, दही, घी का इस्तेमाल करें। गाय और कुत्ता के लिए श्राद्ध तिथि के दिन बने भोजन से सबसे पहले निकाल लें। इसके बाद ब्राम्हणों को आदर पूर्वक भोजन कराएं। सफेद वस्त्रों से सम्मानित करें। कहा जाता है कि उस मृत व्यक्ति की आत्मा तक भोजन पहुंच जाता है। इसके बाद स्वास्थ्य वाचक तथा वैदिक पाठ करें।

कमजोर वर्ग के लोगों के हाथों से बना श्राद्ध का भोजन सर्वोत्तम

इस अवसर पर यदि पितरों के लिए बनाए जाने वाले प्रसाद या भोजन यदि कमजोर वर्ग के लोगों द्वारा बनाया जाए तो इससे और भी अधिक शुभ माना जाता है। लेकिन साथ ही भोजन के संदर्भ में कुछ नियम है। जिसका पालन करना जरूरी होता है। श्राद्ध के प्रसाद के रूप में बनाएं जाने वाले भोजन शुद्ध शाकाहारी बनना चाहिए। जिसमें मृतक व्यक्ति का पसंदीदा भोजन भी शामिल होना चाहिए। 

मृतक के मन पसंद भोजन पकाएं

बेहतर तो यही होता है कि श्राद्ध के दिन केवल वही भोजन पकाया जाए जो मृतक व्यक्ति को बहुत ज्यादा पसंद था। श्राद्ध का भोजन सबसे पहले कौआ और गाय के लिए निकालने के बाद ब्राह्मणों और परिजनों को खिलाना चाहिए और अंत में उस भोजन को घर के परिवार ग्रहण करें।

पितरों के मनपसंद भोजन बनाना श्रेष्ठ होगा

श्राद्ध के नाम पर केवल पितरों के मनपसंद भोजन  पकाना प्राप्त नहीं है बल्कि मृतक पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना भी करना जरूरी है। साथ ही अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए गरीब और जरूरतमंद लोगों को भी भोजन कराना चाहिए। यदि किसी आकाल मृत्यु का पिंडदान किया गया हो तो पितृ पक्ष में ही किसी उपयुक्त कर्मकांडी पंडित से उसका निदान भी करवाना चाहिए क्योंकि ऐसी मान्यत कि यदि पितरों की आत्मा की शांति और मोक्ष प्राप्ति नहीं होती है ,तो उस स्थिति में पूर्वज अपने वंशजों को तरह-तरह के कष्ट देने लगते हैं। व्यक्ति की जन्मकुंडली में पितृदोष के योग के रूप में परिलक्षित होते हैं।

दोपहर के वक़्त करें श्राद्ध कर्म

श्राद्ध केबल दोपहर में ही करें। साथ में तीन वस्तुएं पवित्र हैं। दुपहिया पुत्र (विवाहिता पुत्र) दिन का आठवां भाग तथा काला तिल। श्राद्ध में तीन प्रशंसनीय बातें हैं। बाहर और भीतर की शुद्धिकरण, क्रोध नहीं करना और जल्दबाजी नहीं करना।

पदम पुराण तथा मनुस्मृति के अनुसार श्राद्ध का दिखावा नहीं करना चाहिए। उसे गुप्त रूप से एकांत में ही करें। धनी होने पर भी विस्तार नहीं करें। श्राद्ध भोजन के माध्यम से दिखावा करना मनाही है।

मृतक के पहले वर्ष श्राद्ध कर्म नहीं करना चाहिए

 मृतक के पहले वर्ष श्राद्ध कर्म नहीं करना चाहिए। पितृ पक्ष के शुक्ल पक्ष, रात्रि में तथा अपने जन्मदिन पर श्राद्ध कर्म नहीं करना चाहिए। कूर्म पुराण के अनुसार जो व्यक्ति अग्नि, बिष के द्वारा आत्म हत्या करता है। उसके नियमित श्राद्ध करने का विधान नहीं है। इसी प्रकार चतुर्दशी तिथि को श्राद्ध नहीं करना चाहिए।

 चतुर्दशी तिथि को मृतक व्यक्ति का श्राद्ध दूसरे दिन अमावस्या तिथि को करने का विधान है। चतुर्दशी तिथि को श्राद्ध करने से अनिष्ट हो सकता है। पितरों को धन से नहीं मन की भावना से प्रसन्न करना चाहिए।

 विष्णु पुराण में भी कहा गया है कि जो व्यक्ति नाना प्रकार के पकवान बनाकर अपने पितरों को विशेष भोजन अर्पित करने में सक्षम नहीं है। वैसे लोग अनाज, चावल, आटा और यदि यह भी संभव न हो तो फल और सब्जी भी आप किसी ब्राह्मण को दान कर सकते हैं। तो उसे भी अपने पूर्वजों का पूरा आशीर्वाद मिलता है।

गरीब व्यक्ति सच्चे मन से अपने पितरों को तिल से तर्पण कर अपने पूर्वजों को संतुष्ट कर सकता है। पितृ पक्ष के दौरान क्रोध करना बुरा माना गया है। श्राद्ध कर्म के दौरान घर में लहसुन, प्याज सहित किसी भी तरह के मांसाहारी भोजन ग्रहण करना वर्जित माना जाता है।

पितृपक्ष के दौरान नया काम करना वर्जित

 पितृपक्ष के दौरान कोई नया काम शुरू नहीं करना चाहिए। ना ही कोई नया वाहन, कपड़ा जैसे चीजें खरीदनी चाहिए। यहां तक कि इस अवधि में किसी नए काम की प्लानिंग भी नहीं करनी चाहिए, क्योंकि इस मौके में कोई मांगलिक कार्य मसलन शादी-ब्याह भी नहीं करना चाहिए। इस प्रकार के कार्य करने से निश्चित रूप से अच्छा नहीं माना जाता है। जबकि इस अवधि में कोई सामान भी खरीदते हैं तो उस सामान से दुख या नुकसान उठाना पड़ता है। बल्कि एक सत्य है श्राद्ध के दौरान किए गए सभी तरह के कार्य विफल होते हैं। इसलिए श्राद्ध की अवधि में किसी भी प्रकार के नया काम शुरू नहीं करना चाहिए।

श्राद्ध और कौआ

प्राचीन मान्यता के अनुसार पितर पक्ष में पूर्वजों की आत्मा धरती पर आती है, क्योंकि उस समय चंद्रमा धरती के सबसे नजदीक रहता है। पितृ लोक चंद्रमा से ऊपर माना गया है। इसलिए जब चंद्रमा धरती के सबसे नजदीक होता है। ग्रहों की स्थिति समान रहता है, तब हमारे पूर्वज धरती पर रहने वाले अपने वंशजों के सर्वाधिक करीब होते हैं तथा कौवे के माध्यम से अपने वंशजों द्वारा श्राद्ध किए जाने वाला भोजन को ग्रहण करते हैं।

आश्चर्य  की बात है यह है कि यदि हम सामान दिनों में कौआ को भोजन करने के लिए आमंत्रित करें, तो वे (कौआ) नहीं आते हैं लेकिन पितर पक्ष के अवसर पर पितरों के नाम पर अर्पित किए जाने वाले भोजन को ग्रहण करते हुए देखा जा सकता है।

इसलिए पितर पक्ष के में किए जाने वाला श्राद्ध के दौरान काफी अच्छा स्वादिष्ट भोजन पकाया जाना चाहिए है क्योंकि मान्यत है कि स्वादिष्ट भोजन को कौआ के रूप में पूर्वज ग्रहण करते हैं और संतुष्ट हो कर अपने लोक को चले जाते हैं। श्राद्ध करने से पूरे साल भर धन-धान्य और समृद्धि की वृद्धि होती रहती है। 

श्राद्ध नहीं करने वाले अथवा अवशिष्ट, रुखा सुखा, बासी भोजन देने वाले व्यक्ति के पूर्वज नाराज़ होकर घर से निकल जाते हैं उसके परिणाम स्वरूप घर में नुकसान, अशांति अकाल मृत्यु, मानसिक उन्माद जैसी बीमारियां होती है।


डिसक्लेमर

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