मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग: एक संपूर्ण गाइड जो आपके सभी प्रश्नों का उत्तर देगी

"मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की संपूर्ण जानकारी: पौराणिक कथा, मंदिर का इतिहास, पूजन विधि, दर्शन के लाभ, रहस्य और प्रश्नों के उत्तर। जानें कैसे पहुंचे इस पवित्र ज्योतिर्लिंग तक और प्राप्त करें भगवान शिव की विशेष कृपा"

Picture of the divine Shivalinga of Mallikarjuna Jyotirlinga

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"परिचय"

*भारत की पवित्र भूमि पर स्थित बारह ज्योतिर्लिंगों में मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का स्थान अत्यंत विशेष एवं महत्वपूर्ण माना जाता है। आंध्र प्रदेश के श्रीशैलम पर्वत पर विराजमान यह ज्योतिर्लिंग न केवल भगवान शिव का दूसरा ज्योतिर्लिंग है, बल्कि यह शिव और शक्ति के संगम का प्रतीक भी है। "मल्लिका" अर्थात देवी पार्वती और "अर्जुन" अर्थात भगवान शिव के नाम से विख्यात इस ज्योतिर्लिंग की कथा भगवान शिव के पारिवारिक प्रेम और वात्सल्य की अनूठी मिसाल प्रस्तुत करती है।

*इस विस्तृत ब्लॉग पोस्ट में हम मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग से जुड़ी पौराणिक कथाओं, ऐतिहासिक तथ्यों, दर्शन के लाभों, पूजा विधियों और कुछ अनसुलझे रहस्यों पर प्रकाश डालेंगे। साथ ही, इससे संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्नों के उत्तर भी देंगे, ताकि आपको इस पावन तीर्थस्थल की संपूर्ण जानकारी प्राप्त हो सके।

"मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा"

*प्रारंभ: भाईचारे का विवाद

*शिवपुराण के अनुसार, एक बार भगवान शिव और देवी पार्वती के दोनों पुत्रों - श्री गणेश और कार्तिकेय के मध्य इस बात पर विवाद उत्पन्न हो गया कि उनमें से श्रेष्ठ कौन है और उनमें से किसका विवाह सर्वप्रथम होगा । कार्तिकेय का तर्क था कि वे बड़े पुत्र होने के नाते उनका विवाह पहले होना चाहिए, जबकि गणेश जी भी अपना विवाह पहले करना चाहते थे । इस विवाद ने इतना विकराल रूप धारण कर लिया कि दोनों भाई अपने-अपने तर्कों के साथ माता-पिता के पास पहुंचे।

"समाधान का प्रयास: शर्त का प्रस्ताव"

*अपने दोनों पुत्रों को इस प्रकार विवाद करते देख माता पार्वती और भगवान शिव ने पहले तो उन्हें समझाने का प्रयास किया । परंतु जब दोनों किसी भी प्रकार से समझाने में असफल रहे, तब उन्होंने एक शर्त रखी । भगवान शिव ने घोषणा की कि तुम दोनों में से जो कोई भी संपूर्ण पृथ्वी की परिक्रमा करके सबसे पहले वापस लौटेगा, उसे ही श्रेष्ठ माना जाएगा और उसका विवाह सर्वप्रथम किया जाएगा ।

"कार्तिकेय का पृथ्वी भ्रमण"

*यह सुनते ही कार्तिकेय अपने वाहन मयूर पर सवार होकर तत्काल पृथ्वी की परिक्रमा के लिए निकल पड़े । वे अपनी तीव्र गति और दृढ़ निश्चय के साथ इस कार्य को पूर्ण करने के लिए अग्रसर हुए, यह आशा करते हुए कि वे निश्चित रूप से इस प्रतियोगिता में विजयी होंगे और उनका विवाह पहले होगा।

"गणेश की बुद्धिमत्ता: माता-पिता की परिक्रमा"

*दूसरी ओर, गणेश जी इस शर्त को सुनकर चिंतित हो गए। उनका स्थूल शरीर और वाहन मूषक की मंद गति को देखते हुए, वे जानते थे कि पृथ्वी की परिक्रमा में कार्तिकेय से प्रतिस्पर्धा करना असंभव है । तभी उनकी बुद्धिमत्ता ने एक अनोखा मार्ग सुझाया। श्री गणेश ने शास्त्रों का अनुशरण करते हुए अपने माता-पिता - भगवान शिव और देवी पार्वती को एक आसन पर बैठने का आग्रह किया और उनकी सात परिक्रमाएं पूरी की ।

*जब भगवान शिव ने उनसे इसका कारण पूछा, तो गणेश जी ने तर्कपूर्ण उत्तर दिया: "हे माता-पिता! मेरे लिए तो आप दोनों ही समस्त संसार हैं। यह समस्त ब्रह्मांड स्वयं आपमें समाहित है। इसीलिए मेरे द्वारा की गई आप दोनों की परिक्रमा पूरे ब्रह्मांड की परिक्रमा के समान है।" 

"गणेश की विजय और विवाह"

*गणेश जी की इस तीव्र बुद्धिमत्ता और भक्तिभाव से भगवान शिव और माता पार्वती अत्यंत प्रसन्न हुए । उन्होंने गणेश जी को विजयी घोषित करते हुए उनका विवाह सिद्धि और रिद्धि नामक दो कन्याओं के साथ करा दिया । कुछ समय बाद, उन्हें 'क्षेम' और 'लाभ' नामक दो पुत्रों की भी प्राप्ति हुई ।

"कार्तिकेय का क्रोध और प्रस्थान"

*जब कार्तिकेय पृथ्वी की परिक्रमा पूरी करके वापस लौटे, तो उन्होंने देखा कि गणेश जी का विवाह हो चुका है और उन्हें दो पुत्र भी प्राप्त हो चुके हैं । यह देखकर वे अत्यंत क्रोधित हुए और उन्होंने इस निर्णय को अनुचित बताया । उनका मानना था कि यह प्रतियोगिता बुद्धि की नहीं बल्कि बाहुबल की थी। रुष्ट होकर कार्तिकेय ने कैलाश छोड़कर क्रौंच पर्वत (जो बाद में श्रीशैलम के नाम से प्रसिद्ध हुआ) पर जाने का निर्णय लिया ।

"शिव-पार्वती का आगमन और ज्योतिर्लिंग का प्रादुर्भाव" 

*अपने पुत्र के इस प्रकार रूठकर जाने से माता पार्वती अत्यंत दुखी हुईं । उनके आग्रह पर, भगवान शिव ने सप्तऋषियों और देवर्षि नारद को कार्तिकेय को मनाने के लिए भेजा, परंतु सभी असफल रहे । अंततः, पुत्र वियोग से व्याकुल शिव और पार्वती स्वयं श्रीशैलम पर्वत पर पहुंचे।

*जब कार्तिकेय को अपने माता-पिता के आगमन का पता चला, तो वे उनसे मिलने के स्थान से 12 कोस दूर चले गए, क्योंकि वे न तो उनकी आज्ञा का उल्लंघन करना चाहते थे और न ही कैलाश वापस लौटना चाहते थे । तब पुत्र स्नेह में आतुर भगवान शिव ने ज्योतिर्मय स्वरूप धारण करके वहीं मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हो गए और माता पार्वती ने भ्रामराम्बिका (भ्रमर के रूप में शिव की पूजा करने वाली) के रूप में उनके साथ ही वहां निवास करना प्रारंभ कर दिया ।

"शाश्वत प्रेम का प्रतीक"

*मान्यता है कि आज भी अमावस्या के दिन भगवान शिव और पूर्णिमा के दिन माता पार्वती अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने के लिए वहां आया करते हैं । इस प्रकार, मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग पारिवारिक प्रेम, समर्पण और वात्सल्य का शाश्वत प्रतीक बन गया।

"तालिका: मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा के प्रमुख पात्र"

*पात्र भूमिका विशेषता

*भगवान शिव न्यायाधीश एवं पिता ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए

*देवी पार्वती माता एवं शक्ति भ्रामराम्बिका के रूप में प्रकट हुईं

*कार्तिकेय बड़े पुत्र रूठकर श्रीशैलम पर्वत पर चले गए

*श्री गणेश छोटे पुत्र बुद्धिमत्ता से शर्त जीती

*मल्लिकार्जुन मंदिर का इतिहास और स्थापत्य कला

*प्राचीनतम उल्लेख और ऐतिहासिक विकास

*मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग मंदिर का इतिहास अत्यंत प्राचीन है और इसका उल्लेख महाभारत और रामायण जैसे प्रमुख ग्रंथों में भी मिलता है । इतिहासकारों के अनुसार, इस मंदिर का पुनर्निर्माण सातवाहन वंश के शासकों ने करवाया था । इसके पश्चात, विभिन्न दक्षिण भारतीय राजवंशों जैसे काकतीय, विजयनगर साम्राज्य और मराठा शासकों ने इस मंदिर की भव्यता और प्रतिष्ठा को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ।

*किंवदंती है कि आदि शंकराचार्य ने भी इस स्थान पर आकर ध्यान लगाया था और यहां उन्होंने अपनी आत्मिक शक्ति को जागृत किया था । इसके अलावा, एक लोककथा के अनुसार, राजा चन्द्रगुप्त की पुत्री चंद्रावती ने, जो इसी पर्वत पर तपस्या कर रही थी, एक चमत्कारिक शिवलिंग की खोज की और उसी स्थान पर मंदिर के निर्माण का आदेश दिया । उसने मल्लिका (चमेली) के पुष्पों से इस शिवलिंग की पूजा की, जिसके कारण इसका नाम मल्लिकार्जुन पड़ा ।

"मंदिर की स्थापत्य कला"

*मल्लिकार्जुन मंदिर द्रविड़ शैली में निर्मित एक उत्कृष्ट उदाहरण है । इसकी वास्तुकला में ऊंचे गोपुरम, पत्थर की जटिल नक्काशी और विस्तृत आंगन जैसी विशेषताएं देखने को मिलती हैं । मंदिर परिसर में कई छोटे-छोटे शिव मंदिर और पवित्र कुंड भी स्थित हैं ।

*मंदिर का मुख्य गर्भगृह जहां ज्योतिर्लिंग स्थापित है, वहां दिव्य और आध्यात्मिक वातावरण अनुभव होता है। मंदिर परिसर में ही देवी भ्रामराम्बिका (एक शक्तिपीठ) का भी मंदिर है, जो इस स्थान को ज्योतिर्लिंग और शक्तिपीठ का अद्वितीय संगम बनाता है । यह एकमात्र ऐसा स्थान है जहां ज्योतिर्लिंग और शक्तिपीठ एक साथ स्थित हैं ।

"तालिका: मल्लिकार्जुन मंदिर के ऐतिहासिक विकास में योगदान देने वाले राजवंश"

*राजवंश/शासक योगदान समयकाल

*सातवाहन वंश मंदिर के पुनर्निर्माण का श्रेय लगभग 02 वीं शताब्दी ईसा पूर्व

*काकतीय वंश मंदिर का विस्तार और संरक्षण 12वीं-14वीं शताब्दी

*विजयनगर साम्राज्य मंदिर की भव्यता को बनाए रखना 14वीं-17वीं शताब्दी

*मराठा शासक मंदिर के रखरखाव में योगदान 17वीं-18वीं शताब्दी

"मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की पूजन विधि"

*मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की पूजा-अर्चना करने की एक विशेष विधि है, जिसका विस्तृत वर्णन शिवपुराण में मिलता है। यहां पूजन करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है ।

"दर्शन और अभिषेक"

*मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से ही समस्त पापों से मुक्ति मिलती है । भक्त सर्वप्रथम ज्योतिर्लिंग के दर्शन करते हैं और फिर जल, दूध, दही, घी, शहद आदि से रुद्राभिषेक करते हैं । रुद्राभिषेक को अत्यंत फलदायी माना जाता है, विशेषकर सोमवार और महाशिवरात्रि के दिन ।

"विशेष पूजा एवं आरती"

*मंदिर में प्रतिदिन विधिवत पंचामृत अभिषेक, बिल्वपत्र अर्पण और धूप-दीप से आरती की जाती है । भक्त नारियल, फल, फूल आदि अर्पित करके अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं। मंदिर में शिवपुराण के पाठ और ललिता सहस्त्रनाम का पाठ भी विशेष रूप से किया जाता है ।

"श्रावण मास और महाशिवरात्रि का महत्व"

*श्रावण मास (सावन) में मल्लिकार्जुन के दर्शन का विशेष महत्व है । इसी प्रकार, महाशिवरात्रि के अवसर पर यहां भव्य उत्सव का आयोजन किया जाता है, जिसमें लाखों श्रद्धालु भाग लेते हैं । इस अवसर पर विशेष पूजन, रात्रि जागरण और भंडारे का आयोजन किया जाता है।

"मनोकामना पूर्ति हेतु विशेष अनुष्ठान"

*ऐसी मान्यता है कि यदि कोई श्रद्धालु श्री मल्लिकार्जुन भ्रमराम्बिका स्तोत्र का नियमित पाठ करता है, तो उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं । इसके अलावा, मंदिर में स्थित नंदी की मूर्ति के कान में अपनी मनोकामना कहने की भी परंपरा है, ऐसा माना जाता है कि ऐसा करने से मनोकामना शीघ्र पूर्ण होती है ।

"मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का महत्व और दर्शन के लाभ"

"आध्यात्मिक महत्व"

*मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का आध्यात्मिक महत्व अतुलनीय है। शिवपुराण के अनुसार, इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से ही मनुष्य समस्त पापों से मुक्त हो जाता है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है । यह स्थान शिव और शक्ति के संगम का प्रतीक है, इसलिए यहां दर्शन करने से दोनों की विशेष कृपा प्राप्त होती है ।

"मनोकामना पूर्ति"

*ऐसी दृढ़ मान्यता है कि मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के दर्शन-पूजन से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं । चाहे वह धन-संपदा की इच्छा हो, स्वास्थ्य लाभ की कामना हो या मान-सम्मान में वृद्धि की अभिलाषा, भगवान शिव अपने भक्तों को सब कुछ प्रदान करते हैं।

"जीवन-मरण के चक्र से मुक्ति"

*धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जो व्यक्ति मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का दर्शन करता है, वह जीवन-मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है और अनंत सुखों का भोग करता हुआ अंततः श्री विष्णु के धाम को प्राप्त होता है । केवल शिखर के दर्शन मात्र से ही सभी प्रकार के कष्ट दूर भाग जाते हैं ।

"पारिवारिक सुख-शांति की प्राप्ति"

*चूंकि मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति पारिवारिक प्रेम और वात्सल्य से जुड़ी है, इसलिए यहां दर्शन करने से पारिवारिक कलह दूर होती है और सुख-शांति का वास होता है । कन्या के विवाह में विलंब हो या संतान प्राप्ति की इच्छा, इस ज्योतिर्लिंग की पूजा-अर्चना से विशेष लाभ प्राप्त होता है।

"मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग से जुड़े कुछ अनसुलझे पहलू और रहस्य"

"स्वयंभू ज्योतिर्लिंग का रहस्य"

*मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग को स्वयंभू (स्वयं प्रकट) माना जाता है । ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव स्वयं इस स्थान पर प्रकट हुए थे, न कि किसी मानव द्वारा स्थापित । यह ज्योतिर्लिंग अनंत ऊर्जा का स्रोत है और इसके चमत्कारिक प्रभाव के बारे में अनेक कथाएं प्रचलित हैं, जो आज भी वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों के लिए रहस्य बनी हुई हैं।

"नंदी की रहस्यमयी मूर्ति"

*मल्लिकार्जुन मंदिर में स्थित नंदी की मूर्ति भी बहुत ही रहस्यमयी मानी जाती है । ऐसा कहा जाता है कि यदि कोई श्रद्धालु श्रद्धा से इस नंदी के कान में अपनी मनोकामना कहता है, तो वह शीघ्र ही पूरी होती है । इस मूर्ति की सकारात्मक ऊर्जा और चमत्कारिक शक्तियों के पीछे का वास्तविक रहस्य क्या है, यह आज भी अनसुलझा है।

"शिव और शक्ति का अद्भुत संगम"

*मल्लिकार्जुन एकमात्र ऐसा स्थान है जहां शक्ति पीठ और ज्योतिर्लिंग दोनों एक ही जगह पर स्थित हैं । इस अद्भुत संगम के पीछे का दार्शनिक और वैज्ञानिक आधार क्या है, यह भी चिंतन का विषय है। कई विद्वानों का मानना है कि इस स्थान पर विशेष प्रकार की ऊर्जा का प्रवाह है, जो शिव और शक्ति दोनों के सिद्धांतों को प्रतिबिंबित करता है।

"प्राचीन शिल्प कला का रहस्य"

*मल्लिकार्जुन मंदिर की शिल्प कला और स्थापत्य में कई ऐसे प्रतीक और चिन्ह उकेरे गए हैं, जिनका रहस्य आज तक कोई नहीं समझ पाया है । इन प्रतीकों के पीछे छिपे गूढ़ ज्ञान और रहस्यमयी संदेश को अभी तक पूर्ण रूप से डिकोड नहीं किया जा सका है।

"मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग से संबंधित पूछे जाने वाले प्रश्न" (FAQs)

*01. मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग कहां स्थित है?

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग आंध्र प्रदेश के कुरनूल जिले (कुछ स्रोत कृष्णा जिला भी बताते हैं) में श्रीशैलम पर्वत पर स्थित है । यह कृष्णा नदी के तट पर बसा हुआ है और हैदराबाद से लगभग 210 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

*02. मल्लिकार्जुन नाम का क्या अर्थ है?

मल्लिकार्जुन नाम दो शब्दों से मिलकर बना है - "मल्लिका" (जो देवी पार्वती का दूसरा नाम है) और "अर्जुन" (जो भगवान शिव का नाम है) । इस प्रकार, मल्लिकार्जुन का अर्थ है "शिव और पार्वती का संयुक्त रूप"।

*03. मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की क्या विशेषता है?

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह एकमात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग है जहां शिव और शक्ति (देवी पार्वती) दोनों एक साथ विराजमान हैं । यहां ज्योतिर्लिंग के साथ-साथ शक्तिपीठ भी है।

*04. मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के दर्शन से क्या लाभ है?

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के दर्शन से समस्त पापों से मुक्ति मिलती है, सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है । इसके साथ ही पारिवारिक सुख-शांति भी प्राप्त होती है।

*05. मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग जाने का सबसे अच्छा समय कौन सा है?

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग वर्ष भर दर्शन के लिए खुला रहता है, लेकिन महाशिवरात्रि, श्रावण मास (सावन) और नवरात्रि के समय यहां विशेष पूजा-अर्चना का आयोजन होता है । इन विशेष अवसरों पर दर्शन करना अत्यंत फलदायी माना जाता है।

*06. क्या मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के आसपास अन्य दर्शनीय स्थल हैं?

हां, मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के निकट ही देवी भ्रामराम्बिका का शक्तिपीठ है । इसके अलावा, श्रीशैलम के प्राकृतिक सौंदर्य और पर्वतीय दृश्य भी अत्यंत मनमोहक हैं।

*07. मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग तक कैसे पहुंचा जा सकता है?

*मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग तक पहुंचने के लिए:

*हवाई मार्ग: निकटतम हवाई अड्डा हैदराबाद (लगभग 215 किमी) है ।

*रेल मार्ग: निकटतम रेलवे स्टेशन मार्कापुर रोड है, जहां से बसें और टैक्सी उपलब्ध हैं ।

*सड़क मार्ग: हैदराबाद, कुर्नूल, नांदेड़ आदि शहरों से नियमित बस सेवाएं उपलब्ध हैं ।

"निष्कर्ष"

*मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह शिव और शक्ति के संगम का प्रतीक है । यहां आकर भक्त न केवल दिव्य अनुभूति प्राप्त करते हैं, बल्कि आंतरिक शांति और आध्यात्मिक ऊर्जा से भी पूर्ण होते हैं। पौराणिक कथा से लेकर ऐतिहासिक महत्व तक, मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग भारतीय संस्कृति और धार्मिक आस्था का अद्भुत उदाहरण है।

*यह "दक्षिण का कैलाश" वास्तव में कैलाश का द्वार है - एक ऐसा द्वार जो मुक्ति की ओर खुलता है । प्रत्येक शिव भक्त को जीवन में एक बार अवश्य ही मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने चाहिए और भगवान शिव एवं माता पार्वती की अनुकंपा प्राप्त करनी चाहिए।

"डिस्क्लेमर"

*इस ब्लॉग में प्रस्तुत सभी जानकारियां विभिन्न धार्मिक ग्रंथों, पौराणिक कथाओं, ऐतिहासिक स्रोतों और सार्वजनिक रूप से उपलब्ध सामग्रियों के आधार पर एकत्रित की गई हैं। यह ब्लॉग केवल शैक्षणिक और सूचनात्मक उद्देश्यों के लिए तैयार किया गया है। इसमें दी गई किसी भी जानकारी को कानूनी, वित्तीय, चिकित्सीय या पेशेवर सलाह के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए।

*ब्लॉग में वर्णित धार्मिक मान्यताएं और पौराणिक कथाएं विभिन्न स्रोतों पर आधारित हैं और व्यक्तिगत आस्था से संबंधित हैं। मंदिर के दर्शन का समय, पूजा विधि और अन्य व्यवस्थाएं समय-समय पर बदल सकती हैं, अतः यात्रा से पूर्व अन्य स्रोतों से संदर्भ लेते रहना चाहिए।

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