Raksha Bandhan 2026:तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, व्रत कथा और महत्व

"रक्षाबंधन 2026 शुक्रवार, 28 अगस्त दिन शुक्रवार को मनाया जाएगा। जानें राखी बांधने का शुभ मुहूर्त, रक्षाबंधन की पूजा विधि, व्रत कथा और पौराणिक महत्व"। 

Raksha Bandhan Picture

"नीचे दिए गए विषयों के संबंध में विस्तार से पढ़ें मेरे ब्लॉग पर" 

*01.रक्षाबंधन 2026

*02.Raksha Bandhan 2026 Date and Time

*03.राखी 2026 शुभ मुहूर्त

*04.रक्षाबंधन पूजा विधि 2026

*05.Rakhi 2026 Vrat Katha

*06.रक्षाबंधन का महत्व

*06.रक्षा बंधन 2026 कब है

*07.Raksha Bandhan 2026 Muhurat in Hindi

 "परिचय"

रक्षाबंधन 2026, 28 अगस्त, दिन शुक्रवार श्रावण माह शुक्ल पक्ष पूर्णिमा तिथि को मनाएं जानें वाले सनातन धर्म का प्रमुख पर्व है, जो भाई-बहन के पवित्र रिश्ते का प्रतीक है। इस दिन बहन अपने भाई की कलाई पर रक्षा सूत्र (राखी) बांधकर उसकी लंबी आयु और सुख-समृद्धि की कामना करती है। भाई अपनी बहन की रक्षा का वचन देता है। यह पर्व सिर्फ़ पारिवारिक नहीं बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।

📅 "रक्षाबंधन 2026 तिथि और शुभ मुहूर्त"

*01.भद्रा काल: इस वर्ष रक्षाबंधन के दिन कोई भद्रा काल नहीं है। 

*02.तिथि: 28 अगस्त 2026 (शुक्रवार)

*03.पूर्णिमा तिथि प्रारंभ: 27 अगस्त 2026 दिन गुरुवार को सुबह 09:08 बजे

*04.पूर्णिमा तिथि समाप्त: 28 अगस्त 2026 दिन शुक्रवार को सुबह 09:48 बजे

*05.राखी बांधने का शुभ मुहूर्त: 28 अगस्त 2026 को प्रातः 09:10 से दोपहर 10:45 तक

*06.भद्रा काल: सुबह 06:05 से 08:50 तक (इस समय राखी बांधना वर्जित माना गया है)

👉 "इसलिए बहनें अपने भाइयों को सुबह 05:30 बजे से दोपहर 10:15 बजे तक राखी बांध सकती हैं"। 

इस दौरान "चर मुहूर्त, लाभ मुहूर्त और अमृत मुहूर्त रहेगा"।

🙏 "रक्षाबंधन 2026 पूजा विधि"

*01. प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।

*02. भाई-बहन पूजा स्थल पर एकत्र हों।

*03. पूजन थाली में राखी, रोली, चावल, दीपक, मिठाई और नारियल रखें।

*04. सबसे पहले भगवान गणेश और श्रीकृष्ण की पूजा करें।

*05. बहन भाई की आरती उतारे, उसके मस्तक पर तिलक लगाए और राखी बांधे।

*06. मिठाई खिलाकर भाई की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना करें।

*07. भाई अपनी बहन को उपहार दे और जीवन भर उसकी रक्षा का संकल्प ले।

📖 "रक्षाबंधन की तीन पौराणिक  कथाएं" 

*01. इंद्राणी और इन्द्र देव की कथा

*02. भगवान श्रीकृष्ण और द्रौपदी की कथा

*03. राजा बलि और देवी लक्ष्मी की कथा

"रक्षा बंधन की पहली कथा: इन्द्राणी और इन्द्र देव की कथा"

प्रस्तावना

रक्षा बंधन केवल भाई-बहन का पर्व ही नहीं है, बल्कि यह देवताओं और दानवों के बीच संघर्षों में भी अपनी दिव्यता दर्शाता है। इसकी सबसे प्राचीन और प्रसिद्ध कथा देवताओं के राजा इन्द्र और उनकी पत्नी इन्द्राणी से जुड़ी है, जिसका उल्लेख पद्मपुराण और अन्य ग्रंथों में मिलता है।

"कथा का आरंभ"

त्रेतायुग में देवता और दानवों के बीच निरंतर संघर्ष होते रहते थे। एक बार देवताओं और असुरों के बीच 12 वर्षों तक भीषण युद्ध छिड़ा। यह युद्ध इतना विकराल हो गया कि देवताओं की सेना धीरे-धीरे पराजित होने लगी। असुरों के राजा बलि ने अपने सामर्थ्य से स्वर्गलोक पर कब्जा करना शुरू कर दिया। स्वर्ग से देवता भागने लगे और उनका मनोबल टूट गया।

देवताओं के राजा इन्द्र भी इस संकट से भयभीत हो उठे। उनके लिए स्वर्ग को बचाना असंभव-सा प्रतीत हो रहा था। ऐसे में वे अपने गुरु बृहस्पति के पास गए और उनसे मार्गदर्शन मांगा।

"इन्द्राणी की भक्ति और रक्षा सूत्र का निर्माण"

इन्द्र की पत्नी शची (इन्द्राणी) अपने पति की स्थिति से अत्यंत दुखी थीं। उन्होंने कठोर व्रत और तपस्या करने का निश्चय किया। इन्द्राणी ने सावन के महीने की पूर्णिमा को विशेष पूजा-अर्चना की और रक्षा का विधान किया।

उन्होंने मंत्रोच्चारण के साथ एक रक्षा सूत्र तैयार किया और अपने पति इन्द्र के दाहिने हाथ पर बांधा। रक्षा सूत्र बांधते समय उन्होंने कहा –

> “यह धागा मात्र धागा नहीं, यह धर्म, विश्वास और शक्ति का प्रतीक है। यह तुम्हारी रक्षा करेगा और तुम्हें विजय दिलाएगा।”

"युद्ध में विजय"

इन्द्राणी द्वारा रक्षा सूत्र बांधने और उनके संकल्प बल से इन्द्र को अपार शक्ति मिली। जब इन्द्र पुनः युद्ध में उतरे, तो वे अद्भुत पराक्रम से लड़े। देवताओं का उत्साह बढ़ा और उन्होंने असुरों को पराजित कर दिया। अंततः स्वर्गलोक की रक्षा हुई।

"महत्व"

इस कथा से यह स्पष्ट होता है कि रक्षा बंधन केवल भाई-बहन तक सीमित नहीं है। यह संरक्षण, आस्था और संकल्प का प्रतीक है। इन्द्राणी ने अपने पति की रक्षा के लिए यह सूत्र बांधा, जिससे यह परंपरा आगे चलकर भाई-बहन के बीच भी प्रचलित हुई।

👉 इस कथा का गूढ़ संदेश है कि सच्चे मन से की गई प्रार्थना और रक्षा सूत्र का बंधन व्यक्ति को असाधारण शक्ति प्रदान करता है।

"रक्षा बंधन की दूसरी कथा: भगवान श्रीकृष्ण और द्रौपदी की कथा"

"प्रस्तावना"

महाभारत काल में भगवान श्रीकृष्ण और द्रौपदी का संबंध केवल भाई-बहन जैसा ही नहीं, बल्कि स्नेह और संरक्षण का अद्भुत उदाहरण है। रक्षा बंधन की यह कथा सबसे लोकप्रिय है और इसे बहन-भाई के स्नेह का सबसे दिव्य प्रमाण माना जाता है।

"कथा का प्रसंग"

महाभारत में एक प्रसंग आता है—युद्ध से पहले भगवान श्रीकृष्ण ने शिशुपाल का वध किया था। युद्ध के दौरान उनके हाथ में चोट लग गई और रक्त बहने लगा।

उस समय द्रौपदी भी वहां उपस्थित थीं। जब उन्होंने देखा कि श्रीकृष्ण के हाथ से रक्त बह रहा है, तो उन्होंने तुरंत अपनी साड़ी का एक टुकड़ा फाड़कर कृष्ण के हाथ पर बांध दिया।

"द्रौपदी का त्याग और कृष्ण का वचन"

द्रौपदी के इस त्याग और स्नेह से भगवान श्रीकृष्ण भावविभोर हो उठे। उन्होंने द्रौपदी से कहा –

> “हे द्रौपदी! तुमने मुझे सच्चे भाव से रक्षा सूत्र बाँधा है। अब जीवनभर मैं तुम्हारी रक्षा करूंगा।”

यहां द्रौपदी ने सच्चे भाई का धर्म निभाया, और श्रीकृष्ण ने रक्षा का वचन दिया।

"द्रौपदी का चीर-हरण प्रसंग"

महाभारत में जब कौरव सभा में द्रौपदी का चीरहरण करने लगे, तब द्रौपदी ने अपने भाइयों, पतियों और बड़ों से सहायता मांगी। लेकिन किसी ने उनकी रक्षा नहीं की। उस समय उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण को पुकारा।

श्रीकृष्ण ने अपने वचन का पालन करते हुए द्रौपदी की लाज बचाई। उन्होंने द्रौपदी की साड़ी को अनंत कर दिया, जिससे कौरवों का प्रयास विफल हो गया।

"महत्व"

यह कथा दर्शाती है कि रक्षा बंधन केवल रक्त संबंधों तक सीमित नहीं है। यह स्नेह, कर्तव्य और धर्म का बंधन है। द्रौपदी और श्रीकृष्ण के बीच कोई रक्त संबंध नहीं था, लेकिन फिर भी दोनों ने भाई-बहन का संबंध निभाया।

👉 इस कथा का संदेश है – “जहाँ सच्चा विश्वास और प्रेम हो, वहाँ ईश्वर स्वयं रक्षा के लिए तत्पर रहते हैं।”

"रक्षा बंधन की तीसरी कथा: राजा बलि और देवी लक्ष्मी की कथा"

"प्रस्तावना"

यह कथा पौराणिक और धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह केवल भाई-बहन के स्नेह की नहीं, बल्कि धन, धर्म और कर्तव्य की भी कथा है।

"कथा का आरंभ"

त्रेतायुग में असुरराज बलि अत्यंत पराक्रमी और दानी राजा थे। उन्होंने तीनों लोकों पर विजय प्राप्त कर ली थी। देवताओं ने भयभीत होकर भगवान विष्णु से प्रार्थना की। तब भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण किया और राजा बलि से तीन पग भूमि दान मांगा।

बलि ने दान देने का वचन दिया। वामन रूपी विष्णु ने अपने तीन पगों से समस्त लोक नाप लिए। एक पग से धरती, दूसरे से आकाश और तीसरे पग में बलि का सिर रख दिया। इस प्रकार बलि पाताल लोक भेजे गए।

"बलि का वचन और विष्णु का निवास"

राजा बलि ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की कि वे उनके राज्य में सदैव निवास करें। भगवान विष्णु ने उनका वचन स्वीकार किया और पाताल लोक में उनके द्वारपाल बनकर रहने लगे।

"देवी लक्ष्मी की चिंता"

जब भगवान विष्णु लंबे समय तक नहीं लौटे, तो देवी लक्ष्मी चिंतित हो गईं। वे पाताल लोक गईं और राजा बलि से मिलीं। लक्ष्मी ने बलि को भाई मानकर उनकी कलाई पर राखी बाँधी और उनसे अपने पति विष्णु को मुक्त करने का वचन लिया।राजा बलि ने बहन के स्नेह का सम्मान करते हुए विष्णु को मुक्त कर दिया।

"महत्व"

इस कथा से स्पष्ट होता है कि रक्षा बंधन केवल भाई-बहन तक ही नहीं, बल्कि स्नेह, धर्म और कर्तव्य का पर्व है। देवी लक्ष्मी और बलि के संबंध से यह भी सिद्ध होता है कि राखी बाँधने से अजनबी भी भाई-बहन के पवित्र रिश्ते में बंध जाते हैं।

👉 इस कथा का संदेश है कि रक्षा बंधन का अर्थ केवल रक्षा करना ही नहीं, बल्कि बंधन, विश्वास और धर्म की मर्यादा निभाना भी है।

🌸 "रक्षाबंधन का महत्व"

भाई-बहन के रिश्ते में प्रेम, विश्वास और सुरक्षा का संदेश।

समाज में पारिवारिक एकता और सामंजस्य को बढ़ावा।

पौराणिक कथाओं के अनुसार रक्षा सूत्र में दिव्य शक्ति होती है।

इसे रक्षा, धर्म, कर्तव्य और प्रेम का महापर्व माना जाता है।

🚫 "रक्षाबंधन के दिन क्या न करें"

भद्रा काल में राखी बांधना अशुभ माना जाता है।

राखी बांधने से पहले भोजन न करें।

भाइयों को गुस्सा, नशा या क्रोध से दूर रहना चाहिए।

बहनों को राखी बांधते समय जल्द बाज़ी नहीं करनी चाहिए।

"रक्षाबंधन के दिन क्या करें – संक्षेप में और सटीक":

*01. स्नान और साफ-सफाई: सुबह स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें।

*02. पूजा का सामान तैयार करें: राखी, रोली, चावल, मिठाई, दीपक और फल इकट्ठा करें।

*03. भाई की कुंडली देखें: भाई की लंबी उम्र और सुख-शांति की कामना करें।

*04. राखी बांधें: भाई की कलाई पर राखी बांधें और उसकी सुरक्षा की कामना करें।

*05. भाई को आशीर्वाद दें: उसका भला और समृद्धि के लिए प्रार्थना करें।

*06. भाई को मिठाई खिलाएं: भाई को मिठाई खिलाएं और आनंद साझा करें।

*07. दान और पुण्य कर्म: गरीबों को दान दें, वरदान और पुण्य कमाएं।
Raksha Bandhan Picture

"रक्षाबंधन पर क्या न करें राहु काल के दौरान (Do’s & Don’ts")

2. राहुकाल क्या है, क्यों घातक है

3. राखी बांधने में राहुकाल का असर

🌸 रक्षाबंधन 2026: क्या न करें और राहुकाल का महत्व

✨ "प्रस्तावना"

रक्षाबंधन भारतीय संस्कृति का एक अनोखा पर्व है जो भाई-बहन के पवित्र रिश्ते का प्रतीक है। इस दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर रक्षा सूत्र (राखी) बाँधती हैं और भाई जीवनभर उनकी रक्षा का वचन देते हैं।

28 अगस्त 2026, शुक्रवार के दिन रक्षाबंधन का पर्व मनाया जाएगा। यह दिन पूरे भारत में उल्लास और श्रद्धा के साथ मनाया जाएगा।

लेकिन शास्त्रों में केवल “क्या करना चाहिए” ही नहीं बल्कि “क्या नहीं करना चाहिए” का भी विशेष महत्व बताया गया है। इसके साथ ही, ज्योतिष शास्त्र में राहुकाल और भद्रा काल जैसे समय को अशुभ माना गया है। यदि राखी बांधने जैसे पवित्र कार्य इन अशुभ समयों में किए जाएं, तो इसका नकारात्मक असर रिश्तों पर पड़ सकता है।

*01. राहुकाल या भद्रा में राखी न बांधें

राहुकाल और भद्रा दोनों समय शुभ कार्यों के लिए वर्जित माने गए हैं।

राहुकाल में कोई भी मंगल कार्य बाधित हो सकता है।

भद्रा काल को शास्त्रों में अशुभ कहा गया है।

👉 इसीलिए राखी बाँधने का समय पंचांग देखकर ही तय करें।

*02. गुस्सा और कटु वचन न बोलें

रक्षाबंधन भाई-बहन के प्रेम का पर्व है। इस दिन क्रोध करना, कटु शब्द बोलना या झगड़ा करना रिश्तों की मधुरता को नष्ट कर देता है।

कोशिश करें कि वातावरण सौहार्दपूर्ण रहे।

बहन राखी बांधते समय भाई से प्रेम पूर्वक बात करे।

*03. बिना स्नान-पूजन किए राखी न बांधें

राखी बाँधने से पहले स्नान करना और घर को शुद्ध करना आवश्यक है।

पूजा किए बिना राखी बांधने से उसका पूर्ण फल नहीं मिलता।

इस दिन स्नान करके, स्वच्छ वस्त्र पहनकर ही राखी बाँधी जाती है।

*04. अशुद्ध हाथ से राखी न बांधें

बहन को चाहिए कि राखी बांधते समय हाथ पूरी तरह स्वच्छ हों।

अशुद्ध हाथ से राखी बाँधना अपवित्र माना जाता है।

यह धार्मिक दृष्टि से दोषपूर्ण है।

*05. मांसाहार और नशे का सेवन न करें

रक्षाबंधन जैसे पवित्र दिन पर मांसाहार और नशे का सेवन पूरी तरह वर्जित है।

यह दिन सात्त्विकता और पवित्रता का प्रतीक है।

इस दिन केवल शाकाहारी, सात्त्विक भोजन ही ग्रहण करना चाहिए।

*06. बायीं कलाई पर राखी न बांधें

शास्त्रों के अनुसार राखी हमेशा भाई की दाहिनी कलाई पर बांधी जाती है।

बायीं कलाई पर राखी बांधना नियम-विरुद्ध है।

दाहिनी कलाई पर बांधने से रक्षा सूत्र का प्रभाव बढ़ता है।

*07. राखी जमीन पर न रखें

राखी को हमेशा पूजा की थाली में रखें।

इसे जमीन पर रखने से यह अपवित्र हो जाती है।

राखी एक रक्षा सूत्र है, इसे पवित्रता से ही संभालना चाहिए।

*08. हंसी-ठिठोली या लापरवाही न करें

राखी बांधना केवल एक रस्म नहीं बल्कि एक गंभीर और भावनात्मक संस्कार है।

इसे मजाक या खेल की तरह लेना उचित नहीं।

राखी बांधते समय भाई-बहन को मन से श्रद्धा और प्रेम रखना चाहिए।

🌑 "राहुकाल क्या है"?

🔹 परिभाषा

राहुकाल दिन का वह समय है जो राहु ग्रह के प्रभाव से अशुभ माना जाता है। ज्योतिष के अनुसार, सूर्य से राहु की स्थिति को देखकर यह समय निर्धारित किया जाता है।

🔹 "राहुकाल की गणना"

दिन को 8 भागों में बाँटा जाता है और हर दिन का राहुकाल अलग होता है।

"उदाहरण (सामान्य गणना"):

*01.सोमवार: सुबह 7:30 – 9:00

*02.मंगलवार: दोपहर 15:00 – 16:30

*03.बुधवार: दोपहर 12:00 – 13:30

*04.गुरुवार: 13:30 – 15:00

-05.शुक्रवार: 10:30 – 12:00

*06.शनिवार: 9:00 – 10:30

*07.रविवार: 16:30 – 18:00

(सूर्योदय-स्थान अनुसार इसमें अंतर हो सकता है।)

⚡ "क्यों घातक है राहुकाल"?

*01. राहु ग्रह एक छाया ग्रह है जो अशुभ फल देने वाला माना जाता है।

*02. इस समय किए गए कार्य में रुकावट, नुकसान या असफलता हो सकती है।

*03. ज्योतिष मान्यताओं के अनुसार राहुकाल में शुरू किए कार्य सफल नहीं होते।

*04. पौराणिक कथाओं में भी राहु को छल-कपट और बाधा का प्रतीक माना गया है।

🌺 राखी बांधने में राहुकाल का प्रभाव

राखी केवल एक धागा नहीं, बल्कि रक्षा, आशीर्वाद और रिश्तों की मजबूती का प्रतीक है।

यदि राखी राहुकाल में बांधी जाए तो उसका फल कम हो जाता है।

भाई की प्रगति और सुख-शांति में बाधा आ सकती है।

यह रिश्ते पर राहु की छाया डाल सकता है।

👉 "इसलिए शास्त्रों ने विशेष रूप से कहा है कि राखी बांधने से पहले पंचांग देखकर शुभ मुहूर्त चुनें"।

🌿 "यदि गलती से राहुकाल में राखी बांध दी जाए तो क्या है उपाय"

*01. भगवान गणेश और विष्णु जी की पूजा करें।

*02. राहु मंत्र का जप करें –

“ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः”

*03. भाई को काला तिल, नीला वस्त्र या ऊँ के निशान वाला ताबीज पहनाएं।

*04. सूर्यास्त के बाद पुनः संकल्प करके भाई के माथे पर तिलक करें।

🪔 "आधुनिक दृष्टिकोण से राहुकाल"

आज के समय में भले ही कई लोग राहुकाल को अंधविश्वास मानते हों, लेकिन यह तथ्य है कि शुभ समय में कार्य करने से मनोवैज्ञानिक रूप से आत्मविश्वास बढ़ता है।

राहुकाल टालकर शुभ कार्य करने से मन में सकारात्मक ऊर्जा आती है। नकारात्मकता का डर खत्म होता है और कार्य सफल होता है।

🌸 "निष्कर्ष"

रक्षाबंधन का पर्व भाई-बहन के रिश्ते को मजबूत करता है। लेकिन इस दिन शास्त्रों द्वारा बताए गए निषेधों का पालन करना उतना ही आवश्यक है जितना कि पूजा-विधि का पालन करना। विशेषकर राहुकाल और भद्रा काल जैसे समय को टालना जरूरी है।

👉 अगर राखी शुभ मुहूर्त में, सात्त्विक वातावरण और प्रेम पूर्वक बांधी जाए तो भाई-बहन दोनों का जीवन सुख-समृद्धि से भर जाता है।

📌 "आधुनिक समय में रक्षाबंधन"

आज रक्षाबंधन सिर्फ़ भाई-बहन तक सीमित नहीं है, बल्कि लोग इसे मित्रता, समाज और पर्यावरण की रक्षा के प्रतीक के रूप में भी मनाते हैं। कई जगह पेड़-पौधों को राखी बांधकर प्रकृति संरक्षण का संकल्प लिया जाता है।

❓ "रक्षाबंधन 2026 से जुड़े कुछ प्रश्न" (FAQ)

Q. रक्षाबंधन 2026 कब है?

👉 28 अगस्त 2026, शुक्रवार को।

Q. राखी बांधने का शुभ समय क्या है?

👉 सुबह 09:10 से दोपहर 01:45 तक।

Q. रक्षाबंधन पर राखी कब नहीं बांधनी चाहिए?

👉 भद्रा काल (सुबह 10:30 बजे से लेकर 12:00 बजे तक) में राखी नहीं बांधनी चाहिए।

Q. रक्षाबंधन का पौराणिक महत्व क्या है?

👉 यह भाई-बहन के रिश्ते के साथ-साथ रक्षा और धर्म का प्रतीक है।

🪢 "निष्कर्ष"

रक्षाबंधन 2026, शुक्रवार 28 अगस्त को मनाया जाएगा। यह पर्व भाई-बहन के पवित्र बंधन का उत्सव है। बहनें राखी बांधकर भाइयों की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना करेंगी और भाई जीवन भर उनकी रक्षा का वचन देंगे। इस अवसर पर हम सबको रिश्तों में विश्वास और प्रेम को मजबूत बनाने का संकल्प लेना चाहिए।

अस्वीकरण (Disclaimer):

इस लेख में दी गई जानकारी भारतीय पंचांग, धार्मिक मान्यताओं और पारंपरिक शास्त्रों पर आधारित है। विभिन्न क्षेत्रों और परंपराओं के अनुसार इसमें भिन्नता हो सकती है। इस ब्लॉग का उद्देश्य केवल धार्मिक और सांस्कृतिक जानकारी प्रदान करना है। किसी भी पूजा-व्रत या धार्मिक अनुष्ठान को करने से पहले अपने गुरु, पुरोहित या स्थानीय पंडित से परामर्श अवश्य करें। इस लेख में दी गई तिथियां और मुहूर्त पंचांग गणना पर आधारित हैं और इनमें खगोलीय परिवर्तन संभव है। पाठक अपने विवेकानुसार इसका पालन करें।


एक टिप्पणी भेजें (0)
और नया पुराने