Deep connection between Indian farming and constellations: Know what farmers should do in which constellation

भारतीय खेती में नक्षत्रों का प्रभाव, खेती के शुभ नक्षत्र और उनकी महत्ता। जानिए कैसे नक्षत्रों का असर होता है खेती पर, खासकर धान की खेती में कौन से नक्षत्र शुभ होते हैं। पढ़िए रोहिणी से लेकर अनुराधा तक खेती का पंचांग, वर्षा और तापमान के साथ।

Indian farming, influence of constellations,

खेती में जानें नक्षत्रों की चक्र कि तस्वीर 

 जानें, भारतीय खेती में नक्षत्र, खेती में नक्षत्रों का प्रभाव, धान की खेती के नक्षत्र, नक्षत्र और वर्षा, खेती में शुभ नक्षत्र, हथिया नक्षत्र का महत्व, स्वाति नक्षत्र में शीत

हिन्दुस्तान: कृषि प्रधान राष्ट्र और नक्षत्रों पर आधारित खेती की परंपरा भारत सदियों से एक कृषि प्रधान देश रहा है जहां 70 फीसदी से अधिक आबादी आज भी खेती से जुड़ी है। भारतीय किसान न केवल मौसम बल्कि नक्षत्रों के आधार पर भी खेती के निर्णय लेते हैं। पौराणिक काल से भृगु संहिता और अन्य ग्रंथों में नक्षत्रों की खेती पर भूमिका स्पष्ट की गई है।

साल में होते हैं 28 नक्षत्र - जानें खेती में उनकी भूमिका

भृगु संहिता के अनुसार कुल 28 नक्षत्र होते हैं, पर आमतौर पर ज्योतिष में 27 नक्षत्रों को ही प्रमुखता दी जाती है। खेती में इन नक्षत्रों के आधार पर बीज बोना, बिचड़ा तैयार करना, रोपाई, कटाई आदि कार्यों का निर्धारण किया जाता है।

30 दिनों के बाद होती है धान की पौधों की बुवाई

30 दिनों के बाद जब पिछड़ा तैयार हो जाता है, तो किसान उसे उखाड़ कर दूसरे खेत में रोप देते हैं ,जो किसान रोहिणी नक्षत्र में खेतों में बिछड़े की बुवाई किए थे वैसे किसान पुनर्वसु नक्षत्र में धान की रोपाई शुरू कर देते हैं । 

जबकि मृगशिरा के किसान अश्लेषा और आद्रा के किसान मघा नक्षत्र में धान की रोपाई करते हैं। 30 दिन धान का बिचड़ा तैयार होने में लगता है। उसके बाद 30 दिन पौधों की रोपाई और जड़ पकड़ने में लग जाता है। अंत के 30 दिन पौधा की मजबूती फल आना और कटाई के लिए तैयार हो जाता है।

Indian farming, influence of constellations,

खेत में धान की पौधों का बुआई करता किसान 

धान की खेती और नक्षत्रों का क्रम:

नक्षत्र कृषि कार्य तापमान व वातावरण वर्षा/शीत की आवश्यकता

रोहिणी बिचड़े की बुनाई की शुरुआत मध्यम तापमान प्रारंभिक वर्षा आवश्यक

मृगशिरा वर्षा पर निर्भर किसान बुनाई करते हैं गर्मी से शीत की ओर बदलाव मानसूनी वर्षा प्रारंभ

आद्रा वर्षा पर आधारित बुनाई नम वातावरण तेज वर्षा

पुनर्वसु रोपाई प्रारंभ (रोहिणी के बिचड़े) ठंडी हवाएं प्रारंभ सामान्य वर्षा

पुष्य रोपाई की तैयारी ठंडक का अनुभव नमी बरकरार

अश्लेषा मृगशिरा के बिचड़े की रोपाई हल्की ठंड कम वर्षा में 

मघा आद्रा के बिचड़े की रोपाई गर्म से ठंडी ओर नमी आवश्यक

पूर्वाफाल्गुनी धान की वृद्धि का चरण मध्यम जल जमाव आवश्यक

उत्तराफाल्गुनी धान की बढ़वार नमी बरकरार मध्यम वर्षा

हस्त (हथिया) सबसे महत्त्वपूर्ण, वर्षा अत्यावश्यक नमी और ठंड का संतुलन यदि वर्षा नहीं हुई तो फसल संकट में

चित्रा फूल और दाने का विकास हल्की ठंड अधिक वर्षा नहीं चाहिए

स्वाति अंतिम वृद्धि, शीत की आवश्यकता तेज ठंडी हवाएं शीत आवश्यक, वर्षा नहीं

विशाखा पकाव का प्रारंभ ठंड बढ़ती है शुष्क वातावरण

अनुराधा पककर तैयार, कटाई निकट शीत वातावरण शीत + सूर्य प्रकाश जरूरी

हथिया नक्षत्र: क्यों कहा जाता है 'धान का स्वर्ण नक्षत्र'?

हस्त नक्षत्र, जिसे देहाती भाषा में हथिया कहा जाता है, 16 दिनों का होता है और इसे 4 भागों में बांटा गया है – लोहा, पीतल, चांदी और सोना। यदि हथिया के सोना चरण में बारिश हो जाए, तो फसल की उपज सोने जैसी होती है। यह धान की उन्नति का निर्णायक समय होता है। हाथिया का अंतिम चरण बारिश होना फसलों की सेहत के लिए लाभदायक होता है।

Indian farming, influence of constellations,

धान की फसल पक्का हो गया है तैयार काटने का है इंतजार

स्वाति नक्षत्र में शीत का प्रभाव:

स्वाति नक्षत्र में वर्षा नहीं, बल्कि शीत की जरूरत होती है। इस शीत के बिना धान का दाना कमजोर रह जाता है। कहा जाता है – “स्वाति की शीत, धान को दे बल”।

नक्षत्रों के अनुसार कृषि चक्र को इस प्रकार जानें:

 * रोहिणी: बुआई (Sowing)

 * मृगशिरा: रोपाई (Transplanting)

 * आर्द्रा: वर्षा (Rain)

 * पुनर्वसु: वर्षा (Rain)

 * पुष्य: ठंडा मौसम (Cold Weather)

 * आश्लेषा: ठंडा मौसम (Cold Weather)

 * मघा: निराई (Weeding)

 * पूर्वा फाल्गुनी: निराई (Weeding)

 * उत्तरा फाल्गुनी: कटाई (Harvesting)

 * हस्त: कटाई (Harvesting)

 * चित्रा: खेत की जोताई (मड़ाई) (Threshing)

 * स्वाति: खेत की जोताई (मड़ाई) (Threshing)

 * विशाखा: रवि फसलों की बुआई (Sowing)

 * अनुराधा: रवि फसलों की बुआई (Sowing)

भारतीय खेती केवल मिट्टी और बीज का खेल नहीं है, यह नक्षत्रों और प्रकृति के संतुलन की परंपरा है। यदि किसान नक्षत्रों के अनुरूप खेती करें तो उपज न केवल अधिक होगी बल्कि गुणवत्ता भी श्रेष्ठ होगी।

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण):

यह ब्लॉग पोस्ट केवल सामान्य जानकारी, पारंपरिक ज्ञान, पंचांग व नक्षत्रों के आधार पर किसानों को जागरूक करने हेतु प्रस्तुत की गई है। इसमें दिए गए नक्षत्र, तिथियाँ, और मौसम संबंधी विवरण धार्मिक ग्रंथों, पौराणिक मान्यताओं तथा ग्रामीण अनुभवों पर आधारित हैं। कृपया कृषि से जुड़े किसी भी निर्णय से पहले अपने क्षेत्र के कृषि वैज्ञानिकों, कृषि विशेषज्ञों, या स्थानीय मौसम विभाग की सलाह अवश्य लें। लेखक व ब्लॉग की टीम किसी भी प्रकार की फसल हानि या कृषि निर्णय के लिए उत्तरदायी नहीं होगी।

यह लेख पारंपरिक ज्ञान, पंचांग और किसानों के अनुभवों पर आधारित है। कृपया किसी भी कृषि निर्णय से पहले विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लें। लेखक फसल हानि के लिए उत्तरदायी नहीं होगा।



एक टिप्पणी भेजें (0)
और नया पुराने