MOHINI EKADASHI VRAT पढ़ें विस्तृत से पौराणिक कथा और जानें पाप से बचने का उपाय

"मोहिनी एकादशी वैशाख शुक्ल पक्ष एकादशी तिथि को मनाया जाता है। विस्तार से जानें मोहिनी एकादशी की व्रत पौराणिक कथा और नौ पाप से बचने का उपाय" 

Picture of Mohini Ekadashi mythological fast story

"समस्त बाधाओं पर विजय और धर्म की स्थापना का प्रतीक - मोहिनी एकादशी। यह कथा हमें सिखाती है कि चाहे कितनी भी बड़ी चुनौती हो, अंत में सत्य ही जीतता है। 🌟"

मोहिनी एकादशी के दिन ये 9 काम भुलकर भी न करें

1. कांसे के बर्तन में भोजन करना और पानी पीना मना है। 2. मांस का भोजन वर्जित है। 3. मसूर की दाल न खाएं 4. चने का साग नहीं खाना चाहिए, 5. कोदो का साग भी नहीं खाना चाहिए 6. मधु (शहद) का सेवन वर्जित है। 7. दूसरे का अन्न नहीं खाना चाहिए 8. दूसरी बार भोजन करना मना है और 9. स्त्री प्रसंग अर्थात ब्रह्मचर्य रहना चाहिए।

व्रत वाले दिन इन बातों का रखें ध्यान

व्रत वाले दिन जुआ भुलकर भी नहीं खेलना चाहिए। व्रत के दिन पान खाना मना है। दातुन करना मना है। दूसरों की निंदा करना मना है। चुगली करना सख्त मना है। पापी मनुष्यों के साथ बातचीत करना और साथ रहना त्याग देना चाहिए। उस दिन क्रोध और मिथ्‍या भाषण का त्याग करना चाहिए। इस व्रत में नमक, तेल अथवा अन्न वर्जित है।

व्रत का माहात्म्य पढ़ें दस हजार गोदान का मिलेगा फल

मनुष्यों अगर विधि पूर्वक मोहिनी एकादशी व्रत करते हैं, तो उनको स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है। अत: मनुष्यों को पापों से डरना चाहिए। इस व्रत के महात्म्य को पढ़ने से एक हजार गोदान का फल मिलता है। व्रत करने का फल गंगा स्नान करने के फल से भी अधिक है।

कैसे करें पूजा जानें विधि

मोहिनी एकादशी व्रत करने के उपरांत सर्वप्रथम गौरी गणेश का पूजन करें। गौरी गणेश को स्नान कराएं। गंध, पुष्प और अक्षत से पूजन करें। इसके बाद श्रीहरि का पूजन शुरू करें।
भगवान विष्णु को आवाहन करें इसके बाद भगवान विष्णु को आसान दें। अब भगवान विष्णु को स्नान कराएं स्नान से पहले जल से, फिर पंचामृत से और अंत में फिर से जल से स्नान कराएं।

सबसे पहले जनेऊ इसके बाद वस्त्र, आंत में आभूषण

फिर भगवान को वस्त्र पहनाएं वस्त्र पहनाने के बाद आभूषण और जनेऊ पहनाएं। इसके बाद पुष्प माला पहनाना है। इसके बाद सुगंधित इत्र अर्पित करें। तिलक करें। तिलक के बाद अष्टगंध का प्रयोग करें।
अब धूप और दीप अर्पित करें। भगवान विष्णु को तुलसी दल विशेष प्रिय है, इसलिए तुलसी पत्ता अर्पित करें। भगवान विष्णु के पूजन में चावल का प्रयोग ना करें। तिल का प्रयोग करें। घी या तेल का दीपक जलाएं और आरती करें। आरती करने के बाद परिक्रमा करें और अंत में नैवेद्य अर्पित करें।

पूजा सामग्री की सूची

मोहिनी एकादशी पूजा में लगने वाले सामग्रियों में देव मूर्ति के स्नान के लिए तांबे का लोटा, जल कलश, गाय का दूध, वस्त्र, भगवान को पहनाने के लिए आभूषण, तिल, नारियल, पंचामृत, सुखा मेवा, गुड़, पान का पत्ता, पैसा, मधु, कुमकुम, दीपक, घी, तिल का तेल, रुई, धूपबत्ती, फूल, अश्वगंधा, तुलसी पत्ता, चावल, जनेऊ, दही, मिठाई, शंख, गाय का गोबर, आम का पत्ता, मौसमी फल, घर के बने पाकवान और केला के पत्ता सहित गंगाजल रहना चाहिए।

मोहिनी एकादशी व्रत की पौराणिक कथा

धर्मराज युधिष्ठिर ने पूछा कृष्ण से ! वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को किस नाम से लोग जानते हैं। इस व्रत की क्या कथा क्या है ? व्रत करने क्या विधि है। सभी तरह की जानकारी विस्तारपूर्वक हमें बताइए।

ऋषि वशिष्ठ ने श्रीराम को बताया था व्रत का महत्व

श्रीकृष्ण ने विस्तार से जानकारी देते हुए कहा कि हे धर्मराज! मैं आपसे पहले एक कथा सुनाता हूं। इस कथा को महर्षि वशिष्ठ ने भगवान श्री रामचंद्र से कही थी। एक समय की बात है श्रीराम ने कहा हे गुरुदेव! कोई ऐसा व्रत हमें बताइए, जिससे मानव का सभी तरह के पाप और दु:ख का विनाश हो जाए। मैंने अपनी पत्नी सीताजी के वियोग और विक्षोभ में बहुत दु:ख भोगे हैं।

मोहिनी एकादशी व्रत करने से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं

महर्षि वशिष्ठ बोले- हे श्रीराम! आपने बहुत सुंदर, लोकहित और ज्ञानवर्धक प्रश्न पूछा है। आपकी बुद्धि अत्यंत कुशाग्र, शुद्ध तथा पवित्र है। यद्यपि आपका नाम स्मरण करने से मनुष्य पवित्र और शुद्ध हो जाता है। फिर भी जनहित में यह प्रश्न काफी शुभ और सुंदर है। वैशाख मास के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाला जो एकादशी व्रत आती है। उसका नाम मोहिनी एकादशी व्रत कहा जाता है। इसका व्रत करने से मनुष्य के सभी पाप तथा सभी तरह के दु:खों से छूटकरा पाकर मोहजाल से मुक्त हो जाता है वह प्राणी। मैं इसकी कथा को विस्तार पूर्वक सुनाता हूं। ध्यानपूर्वक तुम सुनो।

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पांच पुत्रों की कथा पुत्रों की पौराणिक कथा 

एक समय की बात है सरस्वती नदी के तट पर भद्रावती नाम की एक नगरी में चंद्रवंशी राजा द्युतिमान राज करता था। उस नगरी में धन-धान्य से संपन्न व पुण्य करने वाला धनपाल नामक वैश्य भी रहता है। वह अत्यंत धर्मालु, कृपालु और श्रीहरि भक्त था। उसने नगर में अनेक भोजनालय, प्याऊ, कुएं, तालाब, धर्मशाला आदि बनवाए थे। सड़कों पर आम, जामुन, पीपल, नीम आदि के अनेक वृक्ष भी लगवाए थे। उसके पांच पुत्र हुए। जिसके नाम इस प्रकार है सुमना, सद्‍बुद्धि, मेधावी, सुकृति और धृष्टबुद्धि।

छोटा बेटा निकला अधर्मी और दुराचारी

इनमें से पांचवां पुत्र धृष्टबुद्धि महापापी और अधर्मी था। वह पितर, बड़े बुजुर्ग आदि को नहीं मानता था। वह वेश्यागामी, दुराचारी व्यक्तियों की संगति में रहकर जुआ खेलता, शराब पीता और पर-स्त्री के साथ भोग-विलास करता था तथा मांस का सेवन करता था। इसी प्रकार अनेक कुकर्मों में वह पिता के धन को नष्ट करता रहता था।

दुराचारी पुत्र को पिता ने घर से निकाला

इन्हीं सभी कारणों से दुखी होकर पिता ने उसे घर और जमीन-जायदाद से निकाल दिया था। घर से बाहर निकलने के बाद वह अपने साथ लेकर आए हुए गहने-कपड़े बेचकर अपना निर्वाह करने लगा। जब सबकुछ खत्म होने के बाद वेश्या और दुराचारी साथियों ने उसका साथ छोड़ दिया। अब वह भूख-प्यास से मरने लगा। कोई सहारा न देख चोरी करना सीख गया।

चोरी करने पर मिला कारागार

एक बार वह चोरी करते पकड़ा गया तो राजा ने वैश्य का पुत्र जानकर चेतावनी देकर छोड़ दिया। मगर दूसरी बार फिर पकड़ में आ गया। राजाज्ञा से इस बार उसे कारागार में डाल दिया गया। कारागार में उसे अत्यंत दु:ख दिए गए। बाद में राजा ने उसे नगर से निकल जाने का आदेश दे दिया।

कारागार से निकल बहेलिया बना

वह उस नगरी से निकलकर धने वन में चला गया। वन में पशु-पक्षियों को मारकर खाने लगा। कुछ समय बाद वह बहेलिया का रूप धारण कर लिया। उक्त बहेलिया धनुष-बाण लेकर पशु-पक्षियों को मारने लगा और आग में पकाकर खाने लगा।

ऋषि के प्रभाव से से आया सद्बुद्धि

एक दिन बहेलिया भूख-प्यास से व्याकुल होकर वह खाने की तलाश में घूमते-फिरते हुआ कौंडिल्य ऋषि के आश्रम में पहुंच गया। उस समय वैशाख मास चल रहा था और ऋषि गंगा स्नान करके आ रहे थे। ऋषि कौंडिल्य के भीगे वस्त्रों के छींटे उस पापी बहेलिया पर पड़ने से उसे कुछ सद्‍बुद्धि प्राप्त हुई।

बहेलिया ने किया मोहिनी एकादशी व्रत

बहेलिया ने कौंडिल्य मुनि से हाथ जोड़कर कहने लगा कि हे मुनि श्रेष्ठ ! हमने जीवन में बहुत ज्यादा पाप किए हैं। आप इन सभी पापों से छूटकारा पाने का कोई सरल उपाय बताए, जो बिना धन से किया जाता है। बहेलिया के दीन और हीन वचन सुनकर मुनि को प्रसन्नता हुई। उन्होंने कहा कि तुम वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की मोहिनी नामक एकादशी का व्रत करो। इस व्रत करने से तुम्हारे सारे पाप नष्ट हो जाएंगे। मुनि के वचन सुनकर वह अत्यंत प्रसन्न हुआ और उनके द्वारा बताई गई विधि के अनुसार व्रत किया।

व्रत का प्रभाव बलिया को मिली मुक्ति

हे राम! इस व्रत के प्रभाव से उसके सब पाप नष्ट हो गए और अंत में वह गरुड़ पर बैठकर विष्णुलोक को गया। इस व्रत को करने से मोह-माया, सभी तरह के पाप सहित सब कुछ नष्ट हो जाते हैं। इस धरा पर इस व्रत से श्रेष्ठ कोई दूसरा व्रत नहीं है। इसके माहात्म्य को पढ़ने से अथवा सुनने से एक हजार गौदान का फल प्रणियों को प्राप्त होता है।

डिस्क्लेमर 

अगर आप मोहिनी एकादशी व्रत करना चाहते हैं तो इस ब्लॉग को पढ़ें। यह ब्लॉग धार्मिक ग्रंथों पर आधारित है। पौराणिक कथा विस्तार से लिखा गया है। एकादशी व्रत के दौरान 09 न करने का सुझाव दिया है। हम सिर्फ आपको जानकारी साझा करना चाहता हूं। यह ब्लॉग आपको कैसा लगा। अपना रिएक्शन हमारे ईमेल पर जरूर भेजिएगा
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