17 अगस्त 2027 (मंगलवार) रक्षाबंधन की सटीक तिथि, राखी बांधने का शुभ मुहूर्त, इसके पीछे का इतिहास और त्योहार को और खास बनाने के लिए 10 बेहतरीन टिप्स।
"रक्षाबंधन के संबंधित पढ़ें 6 कहानियां। राजा बलि और भगवान वामन, चंद्रशेखर आजाद और गरीब बुढ़िया, कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला और महादेवी वर्मा की कथा, हिमायू और कर्मावती, सिकंदर और राजा पुरू व कृष्ण और द्रौपदी की कथा"
"रक्षाबंधन भाई और बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक है। बहन जहां भाई की कलाई पर राखी बांधकर अपनी रक्षा की गुहार लगाती है। वही भाई उसे आजीवन रक्षा करने का वचन देता है"।
"जानें रक्षाबंधन के दिन का पंचांग"
रक्षाबंधन 17 अगस्त 2027, दिन मंगलवार, शुक्ल पक्ष, पूर्णिमा तिथि है। इस दिन सूर्योदय सुबह 5:27 बजे पर और सर्यास्त शाम 6:16 बजे पर होगा। इस दिन नक्षत्र धनिष्ठा, योग शोभना है। पूर्णिमा तिथि का शुभारंभ 16 अगस्त दिन सोमवार को सुबह 10:28 बजे से शुरू होकर 17 अगस्त दिन मंगलवार को दिन के 12:58 बजे तक रहेगा।
"राखी बांधने का उचित समय"
17 अगस्त 2017 दिन मंगलवार रक्षाबंधन के दिन शुभ मुहूर्त इस प्रकार हैं। अभिजीत मुहूर्त दोपहर 11:30 बजे से लेकर 12:15 बजे तक, चर मुहूर्त सुबह 8:36 बजे से लेकर 10:13 बजे तक, लाभ मुहूर्त 10:13 बजे से लेकर 11:49 बजे तक, अमृत मुहूर्त 11:49 बजे से लेकर 01:26 बजे तक शुभ मुहूर्त दोपहर 03:03 बजे से लेकर 04:39 बजे तक और विजय मुहूर्त 01:58 बजे से लेकर 02:50 बजे तक रहेगा। इस दौरान आप अपने भाइयों के हाथों पर शुभ मुहूर्त देखकर राखी बांध सकते हैं।
"पौराणिक कथाएं रक्षाबंधन के संबंध में"
कथा के संबंध में कहा जाता है कि जब राजा बलि ने एक सौ यज्ञ पूर्ण कर 101 यज्ञ शुरू की तो इंद्र के आसन डोलने लगा। इंद्र को अंदेशा हो गय कि कहीं राजा बलि स्वर्ग पर अधिकार ना कर ले।
इंद्र आदि देवताओं ने भगवान विष्णु से रक्षा की प्रार्थना की। भगवान ने वामन अवतार लेकर ब्राह्मण का वेश धारण कर लिया और राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुंच गए। उन्होंने बलि से तीन पग भूमि भिक्षा के रूप में मांग ली। जबकि गुरु शुक्राचार्य ने भगवान विष्णुुु को वामन केे रूप धारण किए हुए पहचान लिया और बलि को इस बारे में सावधान कर दिया। परंतु दानवीर राजा बलि ने अपने वचन से नहीं मुकरा और तीन पग भूमि दान देने का वचन दे दिया। वामन रूप धारण किए भगवान विष्णु ने एक पग में संपूर्ण स्वर्ग लोक नाप लिया। दूसरे पग में पूरी पृथ्वी को नाप दिया। तीसरा पैर प्रभु कहां रखे बलि के सामने संकट उत्पन्न हो गया। अपना वचन नहीं निभाता तो वह पापी कहलाता। आखिर उसने अपना सिर भगवान के आगे कर दिया और कहा कि आप अब आपना पैैर मेरे सिर पर रख दीजिए। वामन बने भगवान विष्णु ने ऐसा ही किया।
देखते ही राजा बलि पाताल लोक पहुंच गया। जब बलि पाताल लोक में चला गया। तब बलि ने अपने भक्ति के बल से भगवान को दिन रात अपने द्वारपाल बनने का वचन ले लिया और भगवान विष्णु को वामन राजा के द्वारपाल (रक्षक) बनना पड़ा।
भगवान के पाताल लोक में निवास करने से परेशान लक्ष्मी जी ने सोचा यदि स्वामी पताल में द्वारपाल बनकर रहेंगे तो बैकुंठ का क्या होगा। इस समस्या के समाधान के लिए लक्ष्मी जी को नारद जी ने एक उपाय बताया। माता लक्ष्मी राजा बलि के पास जाकर उसे रक्षा सूत्र बांधकर अपना भाई बनाया। माता लक्ष्मी ने राजा बलि से उपहार स्वरूप अपने पति भगवान विष्णु को मांग लिया। माता लक्ष्मी अपने पति भगवान विष्णु को अपने साथ वैकुंठ ले गई। उस दिन श्रावण मास शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि थी। उसी दिन से रक्षाबंधन का त्यौहार मनाने की परंपरा शुरू हो गई।
"श्री कृष्ण और द्रौपदी से संबंधित कथा"
"रक्षाबंधन का संबंध विश्व विजेता सिकंदर और राजा पुरू से जुड़ा है"
एतिहासिक कथा के अनुसार विश्व विजेता सिकंदर की धर्म पत्नी ने अपने पति के हिंदुस्तानी शत्रु पुरू राजा को रक्षा सूत्र बांधकर अपना दत्तक (मुंह बोला) भाई बना लिया था।
युद्ध के समय सिकंदर को ना मारने का वचन ले ली थी। राजा पुरू ने युद्ध के दौरान हाथ में राखी बांधी राखी का और अपनी बहन को दिए वचन का सम्मान करते हुए सिकंदर को जीवनदान दियाा। इतिहास में सिकंदर व पोरस ने युद्ध के पूर्व रक्ष सूत्र की अदला-बदली की थी। युुद्ध के दौरान राजा पोरस ने जब घातक हथियार से प्रहार करने के लिए हाथ उठाया तो उसके हाथ में बंधी देखकर रक्षा सूत्र अपना हथियार रख दिया। सिकंदर ने राजा पोरस को बंदी बना लिया। सिकंदर ने पोरस के हाथ में रक्षा सूत्र बंधा देख बंदी से मुक्त कर दिया। रक्षा सूत्र का मान रखते हुए भारत से वापस लौट गया।
"हिमांयु और कर्मावती की कथा"
वीर राजपूत राजा और सैनिक जब लड़ाई पर जाते थे तब घर की महिलाएं उनको माथे पर महावीरी का तिलक लगाने के साथ-साथ हाथों में रक्षा सूत्र भी बांध देती थी। क्षत्रानियों को विश्वास था कि हाथ में बंधे धागा उन्हें विजय प्राप्ति के साथ वापस ले आएगा। राखी के साथ एक और ऐतिहासिक प्रसंग जुड़ा हुआ है।
मुगल काल के दौरान जब मुग़ल बादशाह हिमायु चित्तौड़ पर आक्रमण करने बढ़ा तो राणा सांगा की विधवा पत्नी कर्मावती ने हिमायू को राखी भेज कर रक्षा करने का वचन ले लिया। हिमायुं ने इसे स्वीकार करके चित्तौड़ पर आक्रमण का ख्याल दिल से निकाल दिया। कालांतर में मुस्लिम होते हुए भी रक्षा सूत्र की लाज रखने के लिए चित्तौड़ की रक्षा हेतु बादशाह हिमायु ने बहादुर शाह के विरुद्ध मेवाड़ की ओर से लड़ाई करते हुए कर्मावती और मेवाड़ राज्य दोनों की रक्षा की।
"कवित्री महादेवी वर्मा से जुड़ी कथा"
महादेवी वर्मा को ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। एक बार साक्षात्कार के दौरान उन से पूछा गया था कि आप इस पुरुस्कार में मिले 1,00000 रुपए की क्या करोगी। कहने लगी ना तो मैं अब कोई कीमती साड़ी पहनती हूं ना कोई सिंगार पटा कर सकती हूं। 1,00000 रुपए पहले मिल गए होते तो भाई को चिकित्सा और दवा के अभाव में मरने नहीं देती। कहते-कहते उनका दिल भर आया। कौन था उनका वह भाई ? हिंदी के युग प्रदर्शक, घूमक्कड़ महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला महादेवी के अपने भाई से कम नहीं थे।
एक बार वे रक्षाबंधन के दिन सुबह-सुबह जा पहुंचे अपनी लाडली बहन के घर। रिक्शा रूकवाकर द्वार से चिल्लाते हुए बोले दीदी जरा 12 रुपए लेकर आना। महादेवी रुपए लेकर आयी और पूछा। भाई बताओ तो सुबह सुबह 12 रुपए की क्यों जरूरत पड़ गई। जबकि आज तो रक्षाबंधन है। आज क्यों पैसे की जरूरत हैं। निराला जी सरलता से बोले रिक्शे वाले को 2 रुपए देना है। राखी बांधने के बाद 10 रुपए तुम्हें देना है। आज राखी है ना ? राखी बंधन पर तुम्हें भी तो पैसे देने होंगे। ऐसे घूमक्कड़ सूर्य कांत त्रिपाठी निराला जी और उनकी मुंह बोली बहन महादेवी वर्मा थी।
"महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद से जुड़ी कथा"
बात उन दिनों की है जब क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद स्वतंत्रता के लिए संघर्षरत थे। और फिरंगी सेना उनके पीछे लगे थे। अंग्रेजों से बचने के लिए शरण लेने हेतु चन्द्रशेखर आजाद भारी बारिश की रात को एक विधवा के घर पहुंच गए। जहां विधवा अपनी बेटी के साथ रहती थी। पहलवान जैसे आजाद को देखकर डाकू समझ कर पहले तो वृद्धा ने अपने घर में शरण देने से इनकार कर दिया। लेकिन जब चंद्रशेखर आजाद ने अपना परिचय दिया तो उन्हें सम्मान पूर्वक अपने घर में शरण दे दी।
बातचीत से आजाद को पता चला कि अत्यंत गरीबी के कारण विधवा की बेटी की शादी में दिक्कत आ रही है। आजाद ने महिला से कहा कि अंग्रेज मेरे सिर पर 5,000 रुपए का इनाम रखा है फिरंगियों ने ? अंग्रेजों को मेरी आने की सूचना देकर 5,000 रुपए का इनाम पा सकती हो। इससे आप अपनी बेटी का विवाह संपन्न करवा सकती हैं। यह सुन कर विधवा रो पड़ी और बोली भैया तुम देश की आजादी के लिए अपनी जान हथेली पर रखकर घूमते हो और ना जाने कितने बहू बेटियों की इज्जत तुम्हारे भरोसे है। मैं ऐसा हरगिज़ नहीं कर सकती या कहते उसने एक रक्षा सूत्र आजाद के हाथों में बांधकर देश सेवा का वचन लिया। सुबह जब विधवा की आंखें खुली तो आजाद जा चुके थे और तकिए के नीचे पांच हजार रुपए पड़े थे। इसके साथ एक चिट्ठी में लिखा था, छोटी सी भेंट चंद्रशेखर आजाद की ओर से।
"अब जानें राखी या रक्षासूत्र कैसी होनी चाहिए"
रक्षा सूत्र तीन धागों का होना चाहिए। लाल, पीला और सफेद। अगर नहीं हो तो लाल और पीला धागा भी चल सकता हैै। रक्षा सूत्र पर चंदन के लेप लगाना बेहद शुभ होता हैै। अगर आपके पास राखी या रक्षा सूत्र नहीं है तो कलावा भी श्रद्धा पूर्वक अपने भाई के कलाई में बांध सकती हैं बहनें।
जानें कैसे बांधे राखी
रक्षाबंधन के दिन बहनें पीतल या तांबे के थाली में रोली, चंदन, अक्षत, दही, रक्षा सूत्र, मिठाइयां और दीपक रखें। रक्षा सूत्र और पूजा की थाली सबसे पहले भगवान को समर्पित कर विधि विधान से पूजा कर ले। इसके बाद भाई को पूर्व या उत्तर की दिशा में मुंह करके बैठने को कहें।
