जाने मां पार्वती से संबंधित सात आश्चर्यजनक घटनाएं जो न कभी सुनें हैं ना पढ़ें हैं

Picture of seven amazing events related to mother Parvati's birth

शिवरात्रि पर विशेष

---"मां पार्वती की जन्म से संबंधित सात आश्चर्यजनक घटना जिसे ना कोई जानता है और ना कभी सुना है"।

 इस घटना का प्रसंग शिव पुराण से लिया गया है। मां का जन्म कैसे हुआ। "मां पार्वती के कितने भाई थे। मां पार्वती की मां कौन थी। पार्वती कि मां की उत्पत्ति कैसे हुई। कितने माह मां की गर्भ में रही पार्वती"। इसी तरह अनेक प्रश्नों का उत्तर इस लेख में आपको पढ़ने को मिलेगा।

"दसवें माह में जन्मी पार्वती"

अक्सर देखा जाता है कि बच्चें मां के गर्भ में आठवें या नवें माह आने पर जन्म ही लेते हैं परन्तु माता पार्वती दसवें माह के अंत में जन्म लिया। शिव पुराण में वर्णित कथा के अनुसार मां पार्वती दस माह गर्भ में रहने के बाद उनका जन्म हुआ।

 मेना का गर्भ में नौवें महीना बीत गए और दसवें माह भी पूरा हो चला तब जगदंबा कालिका ने समय पूर्ण होने पर गर्भस्थ शिशु की जो गति होती है उसी को धारण किया अर्थात जन्म ले लिया। इस अवसर पर शक्ति सती साध्वी शिवा पहले मेना के सामने अपने ही रूप में प्रकट हुई।

 उस दिन बसंत ऋतु के, चैत मास की नवमी तिथि को मृगशिरा नक्षत्र में आधी रात के समय चंद्र मंडल से आकाश गंगा की गति मेना के उदर से देवी शिवा का अपने ही स्वरूप में प्रादुर्भाव हुआ। मेना का रूप दर्शन करा पुनः नवजात शिशु बन गई।

"27, वर्षों तक तप के बाद मिली पर्वती"

पार्वती को पाने के लिए मेना ने 27 वर्षों तक तप किया। तप के दौरान गंगा के किनारे उमा की मिट्टी की मूर्ति बनाकर नाना प्रकार की वस्तुएं समर्पित करके उनकी पूजा करती थी। देवी मेना कभी निराहार रहती, कभी व्रत के नियमों का पालन करती, कभी फल खाती, कभी जल पीकर रहती और कभी हवा पीकर ही रह जाती थी।

मेना के तप से जगदंबा उमा अत्यंत प्रसन्न हुई और पुत्री के रूप में जन्म लेने का वरदान दिया।

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"100 भाइयों की लाड़ली बहन थी मां पर्वती"

माता पार्वती सौ भाइयों की सबसे छोटी और दुलारी बहन थी। शिव पुराण में वर्णित कथा के अनुसार देवी मेना ने अत्यंत कठोर तप कर कालिका रूप में मां का दर्शन किए थे। मां कालका बोली हे देवी मैना, मैं तुम्हारे तप से प्रसन्न हूं। तुम मनोवांछित वर मांगों। हिमालय प्रिय तुम मेरे प्राणों के सामान व्यापी हो। तुम्हारी जो इच्छा वह वर मांगों। उसे मैं निश्चय ही दे दूंगी। तुम्हारे लिए मुझे कुछ भी अदेय नहीं है।

 कालिका मां की अमृत के समान मधुर वचन सुनकर हिमगिरी कामिनी देवी मेना बहुत संतुष्ट हुई और इस प्रकार बोली के शिवे, यदि मैं वर पाने योग्य हूं, तो फिर आप से श्रेष्ठ वर मांगती हूं। जगदंबा पहले तो मुझे 100 पुत्र हो, उन सबकी बड़ी आयु हो, वह बल पराक्रम से युक्त तथा रिद्धि सिद्धि के समान हो। अतः पुत्रों के पश्चात एक पुत्री हो जो रूप और गुणों से सुशोभित होने वाली हो।

 वह दोनों कुलों को आनंदित करने वाली तथा तीनों लोकों को पूजित हो। देवी बोली पहले तुम्हें 100 बलवान पुत्र प्राप्त होंगे। तुम्हारी भक्ति से संतुष्ट हो मैं स्वयं तुम्हारे यहां पुत्री के रूप में अवतीर्ण होऊंगा और समस्त देवताओं से सेवित हो उनका कार्य सिद्ध करूंगा। ऐसा कह कर जगद्वात्री, परमेश्वरी, कालिका, शिवा देवी मेना को देखते देखते वहीं अदृश्य हो गई।

"माता पर्वती के बड़े भाई का नाम था मैनाक"

देवी मेना के पहले पुत्र का नाम मैनाक था। मैनाक ही पार्वती के बड़े भाई थे। घटनाक्रम के अनुसार मेना के गर्भ रहा और वह प्रतिदिन बढ़ने लगा। समयानुसार उसने एक उत्तम पुत्र को जन्म दिया। जिसका नाम मैनाक था। उसने समुद्र के साथ उत्तम मैत्री बांधी। वह अद्वितीय पर्वत नाग बंधुओं के उपभोग का स्थल बना हुआ है। उसके समस्त अंग श्रेष्ठ है। हिमालय के सौ पुत्रों में वह सबसे श्रेष्ठ और महान बल पराक्रम से संपन्न है। अपने से या अपने बाद प्रकट हुए समस्त पर्वतों में एकमात्र मैनाक ही पर्वतराज के पद पर प्रतिष्ठित है।

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"मां पार्वती की नानी का नाम स्वाधा"

शिव पुराण में वर्णित कथा के अनुसार राजा दक्ष की 60 कन्याएं हुई थी, जो सृष्टि की उत्पत्ति में कारक बनी। उन कन्याओं में एक स्वाधा नाम की कन्या थी। जिसका विवाह उन्होंने पितरों के साथ किया था।

 स्वाधा की तीन पुत्रियां हुई थी। ये तीनों कन्याएं पितरों की मानसी पुत्रियां थी। उनके मन से प्रकट हुई थी। इसका जन्म किसी माता के गर्भ से नहीं हुआ था। अतः यह अयोनिजा थी। केवल लोक व्यवहार से स्वाधा की पुत्री मानी जाती थी। तीनों बहनें परम योगिनी और ज्ञाननिधिता थी तथा तीनों लोकों में सर्वत्र (कहीं भी) जा सकने वाली थी।

"पार्वती के मौसेरी बहनें थी सीता और राधा" 

स्वाधा कि तीन पुत्रियां थी। प्रथम मेना, द्वितीय धन्या और तृतीय पुत्री का नाम कलाबती थी।मेना के गर्भ से माता पार्वती का जन्म हुआ। उसी प्रकार धन्या के गर्भ से सीता और कलाबती की गर्भ से राधा रानी उत्पन्न हुई। इस प्रकार माता पार्वती, सीता और राधा रानी सगी मौसेरी बहनें हुईं।

 मेना की पुत्री जगदंबा पार्वती देवी अत्यंत कठोर तप करके भगवान शिव की प्रिय पत्नी बनी। धन्या की पुत्री सीता भगवान श्रीराम जी की पत्नी हुई और लोकाचार का आश्रय ले श्रीराम के साथ विहार करी। साक्षात गोलोक धाम में निवास करने वाली राधा ही कलाबती की पुत्री हुई। वे गुप्त स्नेह में बंधकर श्रीकृष्ण की प्रियतम बनी।

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"नारद ने पार्वती के हस्तरेखा देख बताएं शिव होंगे पति"

एक दिन गिरिराज हिमालय के घर नारद मुनि पहुंचे। गिरिराज ने अपनी पुत्री पार्वती को बुलाकर नारद मुनि के चरणों में प्रणाम कराया। हिमालय बोले हे मुनि नारद, ब्रह्मा पुत्रों में श्रेष्ठ, ज्ञानवान प्रभु। आप सर्वज्ञ हैं और कृपा पूर्वक दूसरों के उपकार में लगे रहते हैं। मेरी पुत्री की जन्म कुंडली में जो गुण दोष हो उसे बताइए।

 मेरी बेटी किसकी सौभाग्यवती प्रिय पत्नी बनेगी। नारद ने मां कालिक उर्फ पार्वती का हाथ देखा और उनके संपूर्ण अंगों पर विशेष रूप से दृष्टिपात करके हिमालय से बोले, शैलराज और मेना दोनों ध्यान से सुनो ? आपकी पुत्री चंद्रमा की आदिकला के समान बड़ी है। समस्त शुभ लक्षण इसके अंगों की शोभा बढ़ा रहे हैं। यह अपने पति के लिए अत्यंत सुख दायिनी होगी और माता-पिता की भी कृर्ति बढ़ाएगी। इसके पति भगवान शिव होंगे। शिव को प्राप्त करने के लिए पार्वती को तपस्या करनी होगी।

डिस्क्लेमर 

यह कथा शिवपुराण पर आधारित है। शिवपुराण में वर्णित प्रसंगों को इस कथा में समावेश किया गया है।




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