सिर्फ गया तीर्थ में दिन रात कर सकते हैं पिंडदान

गया तीर्थ में दिन और रात को पिंडदान करने का विधान विस्तार पूर्वक से गरुड़ पुराण में लिखा गया है। गरुड़ पुराण के अनुसार ब्रह्मा जी ने व्यास मुनि से कहा कि गया में पिंडदान करने से पितरों को पाप से मुक्ति मिलती है। साथ ही विष्णु धाम की प्राप्ति होती है।

भादो पूर्णिमा तिथि से शुरू होकर  15 दिनों भादो मास की अमावस्या तिथि तक पितृ पक्ष श्राद्धकर्म  गया तीर्थ में हर वर्ष आयोजन होता है। गया तीर्थ में दिन रात श्रद्ध करने का विधान है।

Vishnupad Temple   Picture of
गया तीर्थ में स्थित विष्णुपद मंदिर
 की तस्वीर

कैसे तैयारी करें पितृ पक्ष श्राद्ध की

गरुड़ पुराण के अनुसार जब कोई भी व्यक्ति अपने पितरों की मुक्ति के लिए गया तीर्थ का यात्रा करते हैं, तो सबसे पहले विधिपूर्वक घर में पितरों का श्राद्ध करके सन्यासी के भेष में अपने गांव से चलना चाहिए। इसके बाद दूसरे गांव में वह जाकर श्राद्ध से अवशिष्ट अन्न का भोजन करके प्रीतिग्रह से विवर्जित होकर यात्रा करें। गया तीर्थ यात्रा के लिए घर से चलने वालों के एक एक कदम पितरों के स्वर्ग रोहण के लिए एक एक सीढ़ी बताए जाते हैं। ऐसा गरूड़ पुराण में विस्तार से बताया गया है।

Devotees doing pindadan day and night

दिन रात कभी भी कर सकते हैं श्राद्ध कर्म

गया तीर्थ में सिर्फ दिन रात प्रत्येक समय में कभी भी श्राद्ध किया जा सकता है। गया तीर्थ में जाकर श्रद्धावान पुरुषों को मौन धारण करके पिंड दान करना चाहिए। श्राद्ध आदि करने से मनुष्यों को  देव, ऋषि एवं पितृ इन तीन ऋणों से मुक्ति मिलती है।

 गया तीर्थ में सिद्धिजनों के लिए प्रीतिकारक, पापियों के लिए भयोव्पादक, और अपनी जीह्वा को लगाते हुए महा भयंकर, नष्ट न होने वाले महा सांपों से संयुक्त आत्मा के लिए कनखल नामक श्राद्ध कर्म करना चाहिए। जिससे पापों से मुक्ति मिलती है। श्राद्ध करने से मनुष्य को अक्षय फलों की प्राप्ति होती है। श्राद्ध करते समय सूर्य देव को नमस्कार करके पिंड दान संपन्न करना चाहिए।

पिंड दान करते समय करें प्रार्थना

Picture of Pindadan's occupations

पिंडदान करते समय लोगों को हाथ जोड़कर प्रार्थना करनी चाहिए। हे कव्यवाह ? सोम, यम, अस्थमा, अग्नि, वहिषद ,सोमप (दिव्य ) पितृृ देवता ? आप महाभाग्य यहां पधारे। आप लोगोंं द्वारा रक्षित हमारे कुल में उत्पन्न जो सपिंंड, पितर, पितृलोक में चले गए हैं। उन सभी परिजनों के लिए पिंडदान करने के निमित्त से मैं इस गया तीर्थ मेंं आया हूं। ऐसा प्रार्थना करके फल्गुु तीर्थ में पिंडदान करके मनुष्य को पितामह का दर्शन करना चाहिए। उसकेेे बाद भगवान गदाधर विष्णु का दर्शन करें । ऐसा करने से वह पितृऋण से मुक्त हो जाता है। फल्गु तीर्थ में स्नान करकेे जो मनुष्य भगवान गदाधर का दर्शन करता है। वह स्वता अपना तो उद्धार करता ही है साथ ही वह अपने कुल के 10 मरे हुए पुरुष और 10 जन्म लेने वाले पुरुष अर्थात २१ पीढ़ियों को उद्धार करता है।

5 दिनों का महत्वपूर्ण श्राद्ध कर्म का विवरण

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पिंडदान के पहला दिन अपनेे पितरों को मंत्रों केे साथ बुलाना चाहिए। इसकेे बाद विधि विधान से पिंड दान कार्य आरंभ करना चाहिए। दूसरेे दिन धर्मानुसार एवं मतानुसार श्राद्ध करनेे वाल व्यक्ति, जो पिंडदान करता है, उसे बाजपेई यज्ञ करने का फ़ल मिलता है। तीसरे दिन पिंडदान के साथ ब्राह्मणों का सेवा करने का विधान है। ब्रह्मा के द्वारा कल्पित ब्राह्मणों के सेवा मात्र से पितृृृृजन मोक्ष प्राप्त्त कर लेेेते है। चौथे दिन फल्गु तीर्थ में स्नान करके देवादिको का तर्पण करें उसके बाद गदाधर भगवान विष्णु, और भोलेनाथ का दर्शन कर पितरों के लिए पिंडदान करें।

पांचवें दिन नवदैवत्य और द्वादशदैवत्य नामक श्राद्ध करना चाहिए। पिता के साथ ही माता का श्राद्ध करना अति उत्तम रहेगा। पृथ्वी को तीन बार दान करने का जो फल मिलता है। वही फल गया मेंं श्राद्ध करने पर मिलता है।

श्राद्ध का महत्व
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गरुड़ पुराण के अनुसार गया में श्राद्ध् करने से पितरों को मुक्ति मिल जाती है। जो व्यक्ति गया तीर्थ मैं मंत्रोच्चारण केे साथ पिंड दान करता हैै। उससे नरक लोक में निवास करनेे वाल पितरों स्वर्ग लोक में और स्वर्ग लोक  में रहने वाले पितरों को मोक्ष प्राप्त होता है।

अक्षय वट और प्रेतशिला में जरूर करें पिंडदान

जो जातक गदालोल कुंड में स्नान करके अक्षय वट वृक्ष के नीचे पिंडदान कर अपने समस्त कुल का उद्धार कर देता है। अक्षय वट वृक्ष के नीचे एक ब्राह्मण को भोजन कराने से करोड़ों ब्राह्मणों को भोजन कराने का फल मिलता है। अक्षय वट में श्राद्ध करने के बाद पितामह का दर्शन करके अक्षय लोकों को प्राप्त करता है। और अपने सौ कुलों का उद्धार कर देता है। प्रेतशिला में वैसे मनुष्य का पिंडदान करना चाहिए,जो अकालमृत्यु से मरा है।


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सामग्रियों की सूची

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